पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२५१

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भाषा-विज्ञान प्राचीन इतिहास जानने में कुछ सहायता मिले । अतएव क्रिया का विवेचन करना मापा-वैज्ञानिक के लिये अत्यंत दुष्कर कार्य है। कंवल संस्कृत, यूनानी और लैवानिक भाषाएँ ऐसी हैं जिनमें क्रिया के प्राचीन आप सुरक्षित हैं। इनमें से विशेषकर संस्कृत और यूनानी के ब्यों में बहुत साम्य है। केल्टिक, इटैलिक तथा जर्मनिक भाषा इस विषय में बहुत पिछड़ी हुई हैं, अर्थात् उनमें प्राचीन रूपों की कमी है। पर जमैनिक भाषाओं में कुछ रूप बहुत प्राचीन और अपरिवर्तित दशा में हैं । यूनानी और लैटिन के क्रिया-रूपों में कुछ भी मान्य नहीं है । श्रतएव प्राचीन रूपों का पता लगाने के लिये संस्कृत और यूनानी के रूपों की तुलना अावश्यक है और उसी के द्वारा क्रिया या प्राचीन इतिहास जाना जा सकता है। मूल भारोपीय भाषा में वर्तमान (Present), 'अपूर्णभूत (Im- perfect) भविष्य (Future), पूर्णभूत (Perfect) और सामान्यभूत (alorit) विद्यमान थे। पर प्लपरफेक्ट (Pluperfect) पीर का जान पड़ता है । नुहतमद् (Subjunctive) और विध्यर्थ (Ortative) भी ग. होंगे । पर इन सभों का प्रयोग जिन अधों में आजकल होता है उन प्रयों में उस समय नहीं होता था। कंवल इनक रूप विदा- मान में मंडल में वापि तीन वाच्य पाए जाते हैं पर यूरोपीय विद्वानों का विचार कि नूल भारोपीय भाषा में केवल दो । याच्य धं-कर चान्य ग्रीन भावाच्य । यूनानी भाषा में भाववाच्य और कर्ट वाच्य तो पर वास्तविक समयान्य नहीं है । भाववाच्य तथा कुछ नए रूपों के सपनोमग नाय बना लिया गया है जो कमवाच्य पं. महा। दिन में मान्य नहीं है। कर्मवाच्य भी ना टंग में बनाया गया है। मग गायन पर बात पग्यिनिन प्रस्था में। अ- वाच्य के For ही नयने पूर्ण भापा । जिमीन का प्रयोग तांग की है. बा. याधुनिक

- नी निगम में किया जाना है। संस्कन

or नीरयों (m.) को मिलाकर कुल दन लकार.