पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३४४

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स्वर और व्यंजन ३१५ उदा० -ओर, ओला हटो, घोड़ा । (८) उ-यह संवृत हस्व पश्च वृत्ताकार स्वर है। उसके उच्चारण में जिलामध्य अर्थात् जीम का पिछला भाग कंठ की ओर काफी ऊँचा उठता है. पर दीर्घ ऊ की अपेक्षा नीचा तथा आगे मध्य की ओर मुका रहता है। उदा०-उस, मधुर, ऋतु। (९) उ०--यह जपित हव संवृत पश्च वृत्ताकार स्वर है। हिंदी की कुछ बोलियों में 'जपित' अर्थात् फुसफुसाहटवाला उ भी मिलता है । उदा०-नक जाड, ३० आवस्ड.; अव० भो । (१०) अ-यह संवृत दीर्घ पश्च वृत्ताकार स्वर है । इसका उच्चारण प्रधान स्वर ऊ के स्थान से थोड़े ही नीचे होता है। इसके उच्चारण में हस्व उ की अपेक्षा अोठ भी अधिक संकीर्ण (वंद से) और गोल हो जाते हैं। उदा०-ऊसर, मूसल, आलू । (११) ई---यह संवृत दीर्घ अग्र स्वर है। इसके उच्चारण में जिह्वान ऊपर कठोर तालु के बहुत निकट पहुँच जाता है तो भी वह प्रधान स्वर ई की अपेक्षा नीचे ही रहता है। और होठ भी फैले उदा०-~-ईश, अहीर, पाती। (१२) इ-~यह संवृत हस्व अग्र स्वर है। इसके उच्चारण में जिह्वा-स्थान ई की अपेक्षा कुछ अधिक नीचा तथा पीछे मध्य की ओर रहता है और होठ फैले और ढोले रहते हैं। उदा० -इमली, मिठाई, जाति । (१३) इ.-यह इ का अपित रूप है। दोनों में अंतर इतना है कि इ नाद और बोष ध्वनि है पर इ, जपित है। यह केवल ब्रज, अवधी आदि वोलियों में मिलती है। उदा०--ब्र० आवतइ, अव० गोलि. ।