पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/८०

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भापायों का वर्गीकरण नगर की भाषा में बड़ा काम हुआ। इस सव का फल यह हुआ कि पलारेंटाइन अथवा पलारेंस भापा इटली की साहित्यिक मापा बन गई । पुस्तक, समा वार-पत्र आदि आज इसी भाषा में लिखे जाते हैं। इस प्रकार इटली में आज एक साहित्य-भाषा प्रचलित है। पुर्तगाली और सेनी में अधिक भेद नहीं है। केवल राजनीतिक कारणों से ये दोनों भिन्न भाषाएँ मानी जाती हैं। रोमांस अथवा रेटोरोमानिक पूर्वी स्विटजरलैंड की भाषा है और रोमानी भाषा इस रोमांस वर्ग की सबसे अधिक पूर्वीय भाषा है । वह रोमानिया की प्रधान भाषा है। अब इन रोमांस भाषाओं के ऐतिहासिक विकास के साथ भारतीय आर्यभाषाओं के विकास की तुलना करें तो कई बातें एक सी मिलती देख पड़ती हैं। जिस प्रकार प्राचीन परिष्कृत लैटिन, बोलचाल की लोकभाषा के बदल जाने पर भी, शिक्षितों, साहित्यिकों और धर्माचार्यों के व्यवहार में प्रतिष्ठित रही; उसी प्रकार अनेक शता- ब्दियों तक संस्कृत मी अमर हो जाने पर अर्थात् वोलचाल में प्राकृतों का चलन हो जाने पर भी भारत की 'भारती' बनी रही। जिस प्रकार एक दिन लैटिन रोमन साम्राज्य की राष्ट्रभाषा थी, उसी प्रकार संस्कृत (वैदिक संस्कृत अथवा आप अपभ्रंश ) आर्य भारत की राष्ट्रभाषा थी। लैटिन और संस्कृत दोनों में ही प्रांतीय विशेषताएँ थीं पर वे उस समय नगण्य थी। जिस प्रकार वास्तविक एकता के नष्ट हो जाने पर और प्रांतीयता का बोलबाला हो जाने पर भी लैटिन धर्म और संस्कृति के द्वारा अपने अधीन प्रांतीय भाषाओं पर शासन करती रही है उसी प्रकार संस्कृत ने भी सदा प्राकृतों और अपभ्रंशों पर अपना प्रभुत्त्र स्थिर रखा है। आज भी देशभापार संस्कृत से बड़ी सहायता ले रही हैं। इसके अतिरिक्त दोनों ही शाखाओं में आधुनिक भाषाओं ने प्राचीन भापा को पदच्युत कर दिया है। जिस प्रकार यूरोप में अव इटालियन, फ्रेंच आदि का प्रचार है, न कि लैटिन का; उसी प्रकार भारत में अाज हिंदी, मराठी, बँगला आदि देशभापाओं का व्यवहार होता है, न कि संस्कृत का। रोमांस भापाओं के विकास में जैसे उच्चारण