पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/११४

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उदू की उत्पत्ति "हरचंद कि लाहौर व सुल्तान ब अकबराबाइ व इलाहा-- बाद हम मस्कन बादशाहान साहब कुदरत व शौकत चूदः व इमारत बलंद सर बफलक रसानीदः दरी शहर हा मौजूद अस्त लेकिन बराबर नमी तवाँ गुफ्त । जेराकि दरी जा सलातीन श्राली. मकाम ज्याद: अज जाहाय दीगर तशरीफ दाश्तः अद। खुशवयानान आँजा मुत्तफ़िक शुदः अज जवानहाय मुतदिद अल्फाज दिलचस्प जुदा नमूदः ब दर बाजे इबारात व अल्फाज तसरुक बकारबुदः जबाने ताज़: सिवाय जवानहाय दीगर बम रसानीदंद व वउर्दू मालूम साखतंद ।” देखा आपने, सैयद इंशा साफ साफ कहते हैं कि लाहौर,. मुल्तान, आगरा, इलाहाबाद की वह प्रतिष्ठा नहीं है जो शाह- जहानाबाद या दिल्ली की है। इसी शाहजहानाबाद में उर्दू का जन्म हुआ है, कुछ मुल्तान, लाहौर या आगरा में नहीं। उद की जन्म-कथा यह है- "शाहजहानाबाद में खुशबयान लोगों ने एकमत होकर अन्य अनेक भाषाओं से दिलचस्प शब्दों को जुदा किया और कुछ शब्दों तथा वाक्यों में हेर-फेर करके दूसरी भाषाओं से भिन्न एक अलग नई भाषा ईजाद की और उसका नाम उदू रख दिया।" इंशा के इस कथन पर विचार करना चाहिए और यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उर्दू की उत्पत्ति के लिये लाहौर, मुल्तान या सिंध जाने की जरूरत नहीं दिल्ली की खाक छानने की फुरसत होनी चाहिए। इंशा के 'खुशबयानान' को लीजिए और ध्यान से देखिए कि इसमें कौन से लोग शामिल हैं। हिंदू लोगों को भी an