पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१६१

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आपा का प्रश्न के कारगा "इस अखबार की ( शिमला का एक अखबार ) जबान उर्दू है लेकिन चूँ कि चंदा देनेवालों में कसरत हिंदू लोगों की. इस- लिये उन्हें खुश करने के लिये उसकी तवायत्त देवनागरी रस्म खत में होती है।"-(वही पृ०८१०) तब हमें आश्चर्य होता है कि गासी दतासी जैसे प्रकांड 'और दूरदर्शी पंडित की प्रतिमा भी सामी कट्टरता इतनी कुठित हो गई कि उसे प्रत्यक्ष सत्य भी नहीं दिखाई देता और तिलपर भी तुर्ग यह कि वह तिनके की ओट में पहाड़ छिपा देगी। बम, हमें इस प्रकार के अनर्गल और मायावी मलापों से दूर रहकर स्पष्ट यह देख लेना है कि मामी कट्टरता और सांप्रदायिक द्वेप के कारण किस प्रकार जीते-जी दिन-दहाड़े हिंदी को दफनाने की घोर चेष्टा की गई और किस 'तरह हमारी उदार और नेक ब्रिटिश सरकार ने इस पुण्य का कर्म में जी खोलकर हाथ बटाया । सब से पहले कंपनी सरकार की करनी देखिए । गासी द तासी का कथन है- "ईस्ट इंडिया कंपनी की यह हिकमत-अमली रही थी कि उर्दू को हिंदी से अलहदः तसव्वर किया जाय । चुनांचे उर्दू का जो जदीद अदब उस ज़माने में पैदा हुआ, उसमें अरवी- 'फारसी के अल्फाज बराबर इस्तेमाल किए जाते थे, बल्कि उन अल्फ़ाज़ को तरजीह दी जाती थी। इस जदीद बादव की सरकारी मदारिस में भी हिम्मत अफजाई की गई।" --(वही पृ० ५४६)