पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७४

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लिखें। स्वामी दयानंद और उर्दू जानना अनिवार्य था। निदान स्वामीजी को लाला जीवनदास से कहना पड़ा- "यहां पारसी खत पढ़नेवाले बहुत कम हैं, इंग्लिश के पाठक बहुत हैं। इसलिये जब कभी लिखें तब नागरी वा इंगरेजी में इस पत्र का मतलब हस ठीक ठीक नहीं समझते हैं।" स्वामीजी पर दया कर कुछ, उर्दू भक्तों ने हिंदी लिखने का. साहस क्रिया । चुनांचे जुवाहरसिंह लिखते हैं- "मुझे हिंदी लिखनी नहीं आती। यदि लिखता हूँ तो बहुत अशुद्ध लिखी जाती है जैसे इस पत्र से विदित होगा । यिस कारण उर्दू वा अंगरेजी में पत्र लिखता रहा हूँ और अब भी अँगरेजी में लिखने लगा था! अंतू जैसे आई वैसे लिख दी चिस कारण कि शायद तकलीफ न हो।" अब तक आपके सामने जो सामग्री आई है उससे कहीं भी इस बात का संकेत नहीं है कि स्वामीजी उर्दू या फारसी- अरबी शब्दों के शत्र थे। जुवाहरसिंह के कहने से यह मान लेना चाहिए कि सहूलियत और आसानी के लिये लोग हिंदी को अपनाने लगे थे और स्वयं स्वामीजी से निवेदन करने लगे जो लोग उर्दू को राष्ट्रभाषा या मुल्की जबान मानते हैं उन्हें तनिक रंडे दिल से इस पर विचार करना चाहिए । १.-पत्र और विज्ञान प्र० भाग.० ३६ । --पन व्यवहार प्रथम भाग १० १२६ ।