पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/३१

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भाषा का प्रश्न २४. १ नाट्यशास्त्र में 'वाहीका' का विधान उदीच्यों के लिये किया गया है और खसों के लिये 'स्वदेशजा' का। भरत मुनि का स्पष्ट निर्देश है “वाहीकभानोदीच्यानां खसानां च स्वदेशजा।" (नात्यशास्त्र, ५३) 'स्वदेशजा' की प्रेरणा तथा उदीच्यों के इतिहास से अवगत होता है कि 'वाहीका' वस्तुतः उदीच्यों की देशभाषा न थी, बल्कि उन पर ऊपर से लाद दी गई थी। शालातुरीय पाणिनि की 'भाषा' का स्थान बाह्रीका को क्यों मिला ?. कुछ इसका भी विचार होना चाहिए। पाणिनि की अष्टाध्यायी 'भाषा' की शिष्टता को सुरक्षित रखने के लिये वनी थी, कुछ भाषा को मार डालने के लिये नहीं । · पाणिनि के कुछ पहले ही या उन्हीं के. समय में उदीच्यों पर पारसीकों का विदेशी शासन जम गया था। उनके प्रभुत्व में 'भाषा' भ्रष्ट हो रही थी। पाणिनि की प्रतिभा ने सूत्रों के आधार पर उसे उबार लिया और 'भाषा' को सदा के लिये सचमुच 'संस्कृत' कर दिया। १-संस्कृत के मीमांसकों में अब 'डेड लैंग्युएज' कहने का फैशन उट गया। संस्कृत के अद्वितीय पंडित डाक्टर कीथ. कहते हैं- S'It is a characteristic feature of Sanskrit; intimately connected with its true vitality, that unlike Medieval: Latin, it undergoes important changes in the course of its prolonged -literary existence, which even to-day: is far from ended." [H S. L. Oxford, P. 17]