पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/४५

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भाषा का प्रश्न विदेशी जातियाँ शुद्ध होकर कट्टर स्वदेशी और ब्रह्मण्य बन रही थीं। संक्षेप में राजपूतों का उदय तथा अपभ्रंश का उत्कर्ष हो. रहा था। वह राजमापा बन रही थी। अपभ्रश के प्रसंग में नोट करने की बात यह है कि उसका उदय उदीच्यों की 'उकारबहुला' भाषा में हुआ तो सही पर उसका विकास उदीच्या में न हो सका। कारगा प्रत्यक्ष है । उदीच्या में पैशाची का प्रसार हो गया। पैशाची को चाहें तो बाली और वाहीका का संकर" रूप कह सकते हैं। राजाश्रय मिल जाने के कारण पैशाचों का प्रसार प्रतीच्या, दाक्षिणात्या और कुछ कुछ मध्या में भी हो गया, पर कभी उसे जनता ने राष्ट्रभाषा के रूप में ग्रहण नहीं किया। करती भी कैसे ? उससे उसका सीधा संबंध ही क्या था ? मागधी और महाराष्ट्री की भी कुछ वही दशा रही जो पैशाची की थी। अतर केवल यह था कि महाराष्ट्री ब्रह्मण्य प्राकृत थी और नाटकों में प्रतिष्ठित भी हो चुकी थी। सागधी की भाँति उसका संबंध भदेसों से न था। फिर भी वह एक कोने 1 १--उदीच्यों की जन्मभाषा ब्राही या मानुषी. वेदवाणी. थी वाहीकों के बस जाने से उसमें वाहीका का मेल हो गया। ईसा के लगभग ५ सौ वर्ष पहले उदीच्य में दारा का शासन स्थापित हो गया : था। इस प्रकार उदीच्य की परंपरागत भाषा यानी मानुषी संस्कृत में बाहरी विकार काम करने लग गए थे। इस योग अथवा मेल-जोल से जा. भाषा निकल आई उसी का व्यवहार शकादिकां में चालू हुआ और वह पैशाची के नाम से प्रयोग में आ गई ।