पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/५८

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राष्ट्रभाषा का निर्णय हमारी कसरत-अल-सनः के मुतल्लिक हायफ जसा किए गए हैं उनके बतलाने के लिये हुब्बवतन के सिवा कुछ और भी मवाद दरकार हैं और महज खयाल की बुलंद व परवाजी से वायात नहीं बदल सकते । रही हिंदोस्तानी जभान, जिसके बोलने- समझनेवालों की तादाद कहीं दस, कहीं चौदह करोड़ बताई गई है, तो अगर 'हिंदी' और 'उर्दू में इस्तलाफ़ बल्कि सिर्फ इम्तयाज भी जायज़ रखा गया तो जाहिर है कि यह दावा खुद बख्खुद बातिल हो जायगा ।"उर्दू, जुलाई सन १६३७ ई० पृ०६७८ । मौलाना हक के 'महज़ इल्मी' और 'तहकीकात लसानी की पुकार पर ध्यान देना हमारा धर्म है। हम इससे अधिक कुछ और चाहते भी नहीं। हमारा दावा है कि यदि उर्दू के लोग इसे इल्म और जवान का सवाल बना लें तो सवाल आप ही इल हो जाता है। इसके लिये विवाद की जगह ही नहीं रहती। जो हो, यहाँ तो हमें स्पष्ट दिखा देना है कि सर जार्ज ग्रियसन की 'तहकीकात लसानी' या भापा सर्वे से सिद्ध क्या होता है। उनका कहना है: Between Bengal and the Punjab every indiviclua} sho has received the very slightest education is bilingual. In his own home and in luis own imme- diale surroundings he speaks a local idiom, but in his intercourse with strangers be employs or understands some form of that great lingua franch, Hindi or Hinsloskni. DIoreover, over the whole of this rast