हिंदुस्तानी लोग के कचहरी में भी लटकावही।" (अंगरेजी सन १८०३ साल ३१ अाईन २, दफा). अब तो किसी भी विचारशील व्यक्ति को यह मानने में तनिक भी अड़चन न होगी कि वास्तव में उक्त विधानों में हिंदी, हिंदुस्तानी और नागरी का अर्थ है वहीं नागरी भाषा, जिसे हम मुसलमानों की देखादेखी हिंदी तथा अँगरेजों की कृपा से हिंदुस्तानी भी कहते हैं। हिंदुस्तानी के विषय में प्रचलित तथा मान्य मत यही है कि वास्तव में यह नाम अँगरेजों का ही दिया हुआ है। पर इधर सैयद सुलेमान साहब की खोज तथा प्रयत्न से वह पुराना सिद्ध हो रहा है। इसलिये यहाँ कुछ उसके पुराने अर्थ पर भी विचार कर लेना चाहिए। कहना न होगा कि सैयद साहब ने हिंदुस्तानी की प्राची- नता सिद्ध करने के लिये जो प्रमाण दिए हैं, उनमें से एक में कहा गया है कि बीजापुर के जाहिल बादशाह आदिलशाह सानी ने (१५८९ ई०-१५९५ ई०) फारसी का इतना गहरा अभ्यास किया कि हिंदोस्तानी बोलना भूल गया और दूसरे में यह बतलाया गया है कि 'शाहजहाँ के दरवार में मुग़लखा गया था, जो हिदास्तानी जवान' के गानों में प्रवीण था । उक्त दोनों अवतरणों के प्रसंगों पर ध्यान देने से पता चलता है कि उनमें 9 १- अलीगढ़ मैगजीन, अक्टूबर सन् १९३३ ३० पृ० २४ । पृ०२८॥