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पृष्ठ:भूगोल.djvu/१६

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अङ्क १-४] ग्वालियर राज्य बहुत है। ग्वालियर पन्द्रहवीं शताब्दी का हिन्दू मन्दिर वाथ नगर के पास भीतरी चट्टानों में प्रस्तर भ्रंश अच्छी होती हैं । यहाँ के किसान भी बड़े महननी हैं । नावर, शिवपुर और इसागढ़ में जमीन अधिक जलवायु-ग्वालियर के ऊँचे पठार की जलवायु उपजाऊ नहीं है। अमझोरा का पूरा जिला पहाड़ी है। न गरमो में अधिक गरम और न सरदी में अधिक इसमें लगभग २६ फीसदी जमीन खेती के काम आती ठंड रहती है। लेकिन मैदान गरमी में बहुत गरम है। ३० फीमदी जमीन ग्वती के योग्य तो है लेकिन हो जाता है। मैदान में सरदी के दिनों में ठंड भी इस समय उसमें खेतो नहीं होती है। शेष ऊसर, ग्वव पड़ती है। पठार में वार्षिक वर्षा ३० इंच और पत्थर और जङ्गल से घिरी है । ज्वार (१८७७ वर्गमील) मैदान में ४० इंच होती है। बाजरा ( ३४१) मकई ( २५८) अरहर ( १०७ ) वनस्पति -- ग्वालियर के उत्तरी भाग में ऐम पेड़ कपास ( ३०५) खरीफ को प्रधान फसलें हैं। चना. और झाड़ियां है जिनमें गरमी के दिनों में पत्ते झड़ (९५२ ) वर्गमील अलसी ( १४३) पोम्त( ६५ ) गेहूँ जाते हैं । तभी उनमें फूल आते हैं। कहीं कहीं वास ( ४६७ ) जो ( ११९) रबी को प्रधान फसलें है। भी मिलता है । धुर दक्षिण में विन्ध्याचल और मत पीली मिट्टी को सींचन की ज़रूरत पड़ती है। ईग्व |पुड़ा पर मध्य भारत के आदर्श बन हैं। और पोस्त की फसलें विना सिंचाई के नहीं हो सकती पशु ग्वालियर के बनों में विशेष कर उत्तरी हैं। लेकिन कुआँ खोदने में बहुत खर्च होता है । इम- भाग में चीता, तेंदुआ, साँभर, चीतल, हिरण, भालू लिये इस समय वं.वल पांच फी मदी खेत मींचे और दूसरे जंगली जानवर बहुत हैं। जाते हैं। कृषि-मालवा प्रदेश की काली माटो या माड खनिज-ग्वालियर राज्य को बिजावर चट्टानों में बड़ी उपजाऊ है । यहाँ कपास और दूसरी फसलें बड़ी अच्छा लोहा पाया जाता है । पहले पनियार के पास