पृष्ठ:भूगोल.djvu/१६१

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१६० नाभा इस राज्य सिस-सतलज (सतलज नदी के इस किनारे वाले) दिया गया। और ज्येष्ठ पुत्र भारपुर सिंह को गही वाले राज्यों में से नाभा एक राज्य है। यह पंजाब पर बैठाया गया। सरकार के आधीन है। इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग १,००० वर्गमील और जन-संख्या २,६१,८२४ है। १८५७ के ग़दर में राजा अंग्रेज सरकार का मुख्य उपज, ऊख, रुई, तम्बाकू और अनाज की है। सच्चा साथी बना रहा। जिसके बदले में राजा को १,५०,००० रु० की भूमि प्रदान की गई और राजा से के शासक तिलोक ज्येष्ठ पुत्र फूल जो प्रतिज्ञा कराई गई कि वह सदैव खतरे के समय में सिधू जाट के वंश से हैं । फूल ने नाभा प्रान्त में एक उसी प्रकार ब्रिटिश सरकार की सहायता करेगा। गाँव की नींव डाली। झींद के राजा और पटियाला राजा बहादुर के पश्चात् भगवानसिंह राजा हुए किन्तु नरेश भी उसी बश से हैं । ये तीनों घराने फुलकियान १८७१ में वे भी मर गए । राना के कोई वंश न था । के नाम से प्रसिद्ध हे । १८०७-८ के पहले का इति- इसलिये ५ मई सन् १८६० ई० की सनद अनुसार हास बहुत कम मूल्य रखता है । किन्तु जब महाराज हीरासिंह फुलकियान वंश के जिन्द के जागीरदार ने जमुना नदी के उत्तर के सारे प्रान्त पर अधिकार राजा चुने गए। यह सिधू जाट जाति के थे और करना चाहा तो नाभा नरेश ने अंग्रेजों से सहायता को अपील की। जब कर्नल आक्टर लोनी नाभा में १८४३ में पैदा हुए थे। आया तो राजा ने उसका बड़ा सत्कार किया और नए राजा को ब्रिटिश सरकार को कुछ नजराना मई सन् १८०९ में नाभा राज्य और दूसरे सिस सत- गद्दी नशीनी के लिये देना पड़ता है । राजा को अपनी जज राज्यों के साथ ब्रिटिश की संरक्षस्ता में सम्मि- प्रजा के जीवन-मरण की आज्ञा देने का अधिकार है। लित कर लिया गया। राजा जसवन्तसिंह ब्रिटिश राज्य की सेना में १२ रणक्षेत्र बाली व १० दूमरी सरकार के सच्चे सहायक थे। किन्तु उनकी मृत्यु के तोपें हैं १० तोपें चलाने वाले ५६० सवार और के पश्चात् उनके पुत्र राजा देवेन्द्रसिंह १८४५ ई० में १२२० पैदल सिपाही हैं। राज्य की मालाना आय प्रथम सिक्ख युद्ध के समय में सिक्खों के साथ अधिक प्रेम दिखलाया और सेना के खाने पीने के सामान लगभग २८,२६,००० रुपये हैं। पहुँचाने में गड़बड़ी की। यद्यपि बाद में सारे नाभा यहाँ के वर्तमान नरेश हिज़ हाईनस महाराजा राज्य की सारी शक्ति ब्रिटिश सहायता में। लगा दी प्रतापसिंह मालवेन्द्र बहादुर हैं । आप १९ फरवरी गई किन्तु तो भी राजा को जांच की गई और राजा १९२८ में गद्दी पर बैठे। महाराज को १३ तोपों की को ७५,००० १० सालाना की पेंशन देकर अलग कर सलामी दी जाती है। - कपूर्थला यह राज्य पंजाब प्रान्त में जालन्धर द्वाब में की उपज हुई । जय सन् १८४६ में जानन्धर द्वाब स्थित है । कपृर्थला राज्य तीन भिन्न भिन्न भागों से अंग्रेजों के अधिकार में आया तो उत्तरी राज्य अहल मिलकर बना है यहाँ के शासक के पूर्वज सिस ( इस वालिया वंश के अधिकार में रहे और वे कुछ सालाना पार ) तथा ट्रॉस सतलज ( उस पार) और बारी कर अंग्रेजों को देते रहे जैसा कि वे रणजीतसिंह को द्वाब पर भी पहले राज्य करते थे। अहल गांव बारी देते थे । बारी द्वाब के राज्य अब भी इस वंश के अगुवा द्वाब में स्थित है । इसी गाँव से अहल वालियाँ घराने के अधिकार में हैं। यहाँ का प्रबन्ध अंग्रेजों के हाथ में है।