२ भूगोल [वर्ष १६ दक्षिण भारत में हैदराबाद राज्य की स्थिति बड़ी राज्य अपनी हीनावस्था में कई भागों में विभाजित सुदृढ़ है । प्राकृतिक एवं व्यापारिक प्रचुर साधनों, होगया तो गोलकुन्डा का उसपर अधिकार होगया और उत्तरोत्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, उपजाऊ तथा भव्य यह प्रभुत्व औरंगजेब के समय तक स्थापित रहा । भूमि, महत्वपूर्ण खनिज पदार्थो', बड़ी नदियों और शहंशाह औरंगजेब ने जो दक्षिण को जीतने सुविस्तृत वनस्पतियों, उसकी प्राचीन ऐतिहासिक वाला दिल्ली का प्रथम अधिपति था पूर्ण प्रभुत्व की कहानियों, वहां के बड़े बड़े राजाओं को गाथाओं ने सुदृढ़ स्थापना की और प्रबन्ध के लिए इस प्रान्त को और स्वयं प्रकृति देवी और यहां को विभूति ने एक सूबेदार के अधीनस्थ कर दिया । रियासत के लिए एक अद्वितीय स्थान, तथा वहां के मोर कमरुद्दीन १४ वर्ष को अवस्था में अपने राजाओं के लिए शक्ति एवं अधिकार का वैभवशाली पिता की मृत्यु के बाद सेनापति नियुक्त और स्वरूप निश्चित कर लिया है। इसके ऐश्वर्य तथा " चिनकालेह खाँ” की उपाधि--औरंगजेब द्वारा भाग्य पर आज भी योरुप के बड़े बड़े राज्य ईर्ष्या कर प्राप्त कर ली । फर्रुखसियर के सिंहासनरूढ़ होने पर सकते हैं। परन्तु यहां काश्मीर की कोमलता तथा वह दक्षिण में सूबेदार घोषित किये गये और उन्होंने कमनीयता. मैसूर की ममता, गोंडल की गरिमा तथा “निजामुलमुल्क वहादुर फतेहजंग' की उपाधि धारण पटियाला की प्रियता की रूप रेखा नहीं है। यहां के कर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना को। इन्होंने सन् सौन्दर्य में अपनापन' है, विभूति में विशेषता तथा १७१२ से १७४८ तक राज्य किया। उन्हीं की १० वीं महानता में अभिमान है। पीढ़ी में आजके हैदराबाद के वर्तमान नरेश है । [इसी राज्य में गोलकुडा की हीरे को खान में सार्वभौमसत्ता से संबंध विश्वविख्यात सात आश्चर्यजनक वस्तुओं में से एक "यदि निजाम गया तो सब गया": यह वाक्य कोहनूर हीरा भी प्राप्त हुआ था। इसके अतिरिक्त बंबई के गवर्नर ने सन् १८५७ के ग़दर के अवसर इसी भूमि में स्वर्ण राशि, कोयला, लोहा, तांबा, मेगनेट, पर हैदराबाद की संतोषप्रद परिस्थिति की महत्ता रक्त मणि इत्यादि धातुयें विद्यमान हैं। यहां लकड़ी प्रदर्शित करते हुये तत्कालीन हैदराबाद के रेजीडेन्ट के बड़े भारी घने जंगल हैं तथा कागज के निर्माण में के एक पत्र में लिखा था । लगभग १६० वषों से जो कच्ची सामग्री नितान्त आवश्यक है वह भी इन निजाम तथा ब्रिटिश सरकार में एक अटूट और जंगलों में अधिकतर पाई जाती है, जिसके उपयोग पारस्परिक सम्बन्ध रहा है । जब जब ब्रिटेन को किसी के लिए एक विशाल कागज-फैक्टरी का संगठन विकट परिस्थिति का सामना करना पड़ा है तब तब अर्धसरकारी रूप से किया गया है। उसने हैदराबाद को सदा अपने मित्र के रूप में इतिहास सहायक होते पाया है । जिस भांति सन् ५७ गदर में निजाम नवाब अफज़ल उद्दौला ने ब्रिटिश सरकार बौद्धधर्म के उत्थान-काल में दक्षिण के भूमिखंड की दिल खोलकर सहायता की थी उसी प्रकार सन् पर अशोक का प्रभुत्व था। फिर ईसा की प्रथम सदी १९१४ के महायुद्ध में भी (जब ब्रिटेन को अपने जीवन- के प्रारंभ में सत्कर्ण तथा अाधुभृत्य उल्लेखनीय थे । काल में सब से भयानक विकट समय का सामना इसके बाद, क्रमशः क्षत्रप गुप्तवंश, बल्लभी, चालुक्य करना पड़ा था) आज के वर्तमान नरेश निजाम नवाब वंश, होयाशल, यादवादि वंशों के राजाओं का तब तक अधिकार रहा जबतक १३वीं सदी के राजनैतिक क्षेत्र उस्मान अली खाँ बहादुर ने भी वास्तविक मित्रता में मुसलमानों का आना नहीं हुआ था। अलाउद्दीन के का उदाहरण पेश किया था और इसी मित्रता के शासनकाल में दक्षिण प्रान्त का एक विशेष भाग दिल्ली उपलक्ष में महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात नगा के आधीन था । जब विजयनगर और बहमनी वंशों सम्राट पंचमजार्ज ने इनकी “हिजएर लटेड हाइनेस्त्र ने प्रधानता प्राप्त की तब हैदराबाद का अधिक भाग की अनुपम उपाधि से और परंपरागत “ब्रिटिश बहमनी राज्य के अधिकार में था । परन्तु जब बहमनी .* If the Nizam goes, all goes.
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