. - अङ्क १-४] रजपूताना ४१ मील में फैल जाती है । सूखने पर इसकी भूमि में ठीक राज्य करने का बचन दिया। तो उमे गज्य दे गेहूँ और चना खूब पैदा होता है । राज्य में आब और दिया गया। चार माल बाद मानसिंह की मृत्यु हो गई अगवली पर्वत की श्रेणियां हैं । नापोबाई, पन्नागिरि, और अहमद नगर के सदार तख्त सिंह राजा चुने मोजात, जालोर, सन्देराव आदि पहाड़ियां हैं जोध- गये । राजा ने ग़दर में अंग्रेजों की अच्छी सहायता पुर के उत्तर का भाग बिलकुल रेगिस्तान है उसे थाल की। १८७३ में उसकी मृत्यु हो गई और महाराज कहते हैं । रेगिस्तान में बालू के बड़े बड़े ढेर हैं जिन्हें जसवन्त सिंह राजा हुये । महाराज को गोद लेने का टेबस कहते हैं। कहीं तो इन ढेरों की ऊँचाई ३०० से अधिकार है और महाराज की पदवी जी० सी० एस० ४०० फुट तक होती है। भाई की है। जैपुर, जोधपुर और उदयपुर तीनों राज्यों ने जोधपुर में बहुत से जागीरदार और ताल्लुकेदार आपस में सलाह की कि जिस प्रकार भी हो सके हैं। जो अपनी भूमि के भीतर स्वतंत्र हैं। ठाकुर उस प्रकार यवनों से स्वतंत्र होना चाहिये । आपस और जागीरदारों के पास राज्य का लगभग ४, में यह भी तै हुआ कि उदयपुर की राजकुमारी से भाग है। पैदा हुआ पुत्र गद्दी का हकदार होगा। बखत सिंह ने नमकीन झीलों के सिवा राज्य में ७२ गांव और अपने पिता अजीत सिंह को मार डाला। गही के ३७० कारखान ऐम हैं जहाँ नमक बनाया जाता है । बारे में झगड़ा हो गया । मरहठों ने सहायता दी, यहां मुलतानी मिट्टी कपूरी में मिलती है। यह बाल जिसके फल स्वरूप यह राज्य मरहठों के अधीन साफ करने के काम आती है। यह मिट्टी अमरकोट, हो गये। सिंध, जोधपुर, बीकानेर श्रादि स्थानों में बिकने के जोधपुर को सिन्धिया ने जीता और ६ लाख का लिये जाती है। अपने स्थान पर यह दो आने बैल कर महाराज जोधपुर पर लगाया। अजमेर का किला (बोरा ) विकती है । ज्वार, बाजरा, मोथी, तिल, और नगर ले लिया। १८०३ में मान सिंह जोधपुर गेहूँ, जौ, चना, अफीम आदि वस्तुएँ पैदा की जाती का गजा हुआ । अँग्रेजों ने सन्धि करनी चाही अभो है । बालू के बड़े बड़े ढेर ऊँटों के हलों से जोते जाते मंधिपत्र पर हस्ताक्षर भी न हो पाय थे कि मानसिंह हैं। जगह अधिक और ऊँटों के हल होने के कारण ने होलकर की मह यता को । इसलिय १८०५ में संधि अधिक से अधिक भूमि में लोग खेती करते हैं। पशि- तोड़ दी गई। इसके बाद जोधपुर पर पिंडारियों और यन ह्वील (रहट) और मामूली कुओं से सिंचाई होती मरहठों के आक्रमण हुए। अमीर खाँ ने इतना उप- है । जहां पर पैदावार कम होती है वहां जमादारों को द्रव मचाया कि मानसिंह गद्दो छोड़ कर भाग गया। केवल चौदहवां भाग मिलता है । नगक, जानवर, भेड़ अमीर खां के चले जाने पर छतरसिंह गद्दी पर बैठा । बकरी, घोड़े, मई, ऊन, हड्डी इत्यादि वस्तुएँ बाहर १४:५८ में अंग्रेजों से संधि हो गई। इसके अनुसार भेजा जाता हैं । गुड़, शक्कर, चावल, चांदी, तांबा, जोधपुर की रक्षा का भार अंग्रेजों पर आया और रेशम, सन्दल, गल्ला और दूसरी बनी हुई वस्तु १.०८.००० की रकम जो जोधपुर सिंधिया को देना बाहर से आती हैं । था अँग्रेजों को देने का बचन दिया गया। १८२४ में जोधपुर के शासक उदयपुर की भांति रामचन्द्र मेड़वाड़ा के २१ गाँव अँग्रेजों को दिये । १८६६ में के राज माने जाते हैं । यह लो। भी अपने मल्लानी प्रदेश भी अंग्रेजों को दे दिया। इसके को सूर्यवंशी कहते हैं। ११९४ में जैचन्द के पाने बदले में १०२००) म० सालाना राजा को मिलता है। शिवा जो राठौर मारवाड़ में उतरे । यह द्वारका जी बाद में फिर मानसिंह ने राज्य की बागडोर अपने के दर्शन के लिये गए थे। यह लोग पाली नामक हाथ में ली किन्तु ठीक ठीक राज्य-प्रबन्ध न होने के गांव में ठहरे । ब्रह्मण लोगों ने राठौरों का माथ दिया। कारण १८१९ में मजबूर होकर अंग्रेजों को रुकावट १६८२ में राठौरों ने मारवाड़ को आधीन किया। डालनी पड़ी । एक सेना भेजी गई जिसने ५ महीने जोधा ने थोड़े समय तक राज्य किया और जोधपुर तक जोधपुर पर अधिकार रक्खा । बाद में राजा ने की नींव डाली । १५४४ में शेरशाह ने ८०,००० हजार O
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