पृष्ठ:भूगोल.djvu/६२

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- अङ्क १-४]] इन्दौर तिरला की लड़ाई में मारा गया और मालवा मरहठों करने में की, किन्तु वह जहर देकर मार डाला गया। के अधिकार में आ गया । जब बाजीराव दक्षिण इसलिए १७५४ में होल्कर ने गाजीउद्दीन के पुत्र की ओर १७३५ ई० में लौटा तो होल्कर ने मालवा मीर शहाबउद्दीन की सहायता की और बादशाही होकर दौड़ लगाई और चम्बल को पार करता हुआ सेना को दिल्ली के समीप परास्त किया । उसी समय आगरा तक गया । १७३६ ई० में होल्कर बाजीराव जब कि अहमदशाह और आलमगीर द्वितीय में के साथ दिल्ली गया और सिंधिया की सहायता शाही तख्त के लिये लड़ाई हो रही थी होल्कर द्वारा दिल्ली नगर के समीप मुग़ल सेना को परास्त शहाबउद्दीन की ही सहायता कर रहा था । किया । सन १७३६ ई० में निज़ाम जो दिल्ली लौट- १७६० ई० में होल्कर ने जब अबदालिस के कैम्प पर कर आया था उसे बाजीराव ने भूपाल के युद्ध में हमला किया तो अचानक वह अकेला पड़ गया और परास्त किया । इस लड़ाई में मल्हारराव ने बड़ी उसको अपनी जान की रक्षा के लिये भागना पड़ा। वीरता दिखाई। १७६१ ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई जिससे १७२८ ई० में मल्हारराव को १२ जिले मालवा मरहठों की ताक़त बिलकुल बरबाद होगई। मल्हार- में मिले जो १७३१ में ८२ जिलों तक बढ़ा दिये गये। राव ने इस लड़ाई में कोई बड़ा भाग नहीं लिया। इस समय मल्हारराव को पूरे मालवा का अधिकार कारण यह हुआ कि जब युद्ध-क्षेत्र में सेनायें अपनी प्राप्त हो चुका था । पेशवा धार के उदाजी अपनी जगहों पर खड़ी की जा रही थीं तो मल्हार- पाड़वार की बढ़ती ताक़त को रोकना चाहता था। राव ने सदाशिवराव भाऊ से कहा कि एकया दो दिन होल्कर ने पहले ही नर्मदा के दक्षिणी प्रदेश के लिये लड़ाई स्थगित कर दी जाय । उसका जवाब और महेश्वर नगर को ले चुका था जो १८१८ भाऊ ने दिया कि "बकरियों के चरवाहे की राय ई० तक उसकी राजधानी रहा । १७३३ ई० में इन्दौर कौन चाहता है ?" तो मल्हारराव ने अपनी सेना उसके अधिकार में तो आ चुका था, किन्तु मंडसर लड़ाई से हटा ली कि ऐसे सेनापति के साथ अपनी की सन्धि तक वह राजधानी नहीं बना था। सेना का बरबाद करना अच्छा नहीं जो उसकी क़द्र नहीं करता। इसके पश्चात् सन् १७३८ ई० में मल्हारराव निजाम के विरुद्ध लड़ाई में भेजा गया । १७३६ ई० मल्हारराव ने राक्षस भवन की लड़ाई में भी भाग में वह पुर्तगालियों के विरुद्ध बेसीन भी गया और लिया जिसके बदले में ३० लाख की भूमि उन्हें प्राप्त १७४८ ई० में रुहेलों के विरुद्ध भी भेजा गया। इस प्रकार दिन प्रति दिन उसकी ताक़त बढ़ती ही अब मल्हारराव की अवस्था ६७ वर्ष की होगई जा रही थी। थी। कहाँ तो वे एक मामूली किसान के पुत्र थे और सन् १७४३ ई० में जैपूर का सरदार सिंह सवाई कहाँ आज वे एक बड़े राज्य के मालिक थे । उनका मर गया तो उसके बड़े पुत्र ईश्वरीसिंह और माधो- राज्य इस समय दक्खिन, खानदेश, नर्मदा की सिंह में राज्य के बारे में झगड़ा हो गया। होल्कर घाटी, मालवा, विन्ध्याचल और सतपुड़ा के जंगलों ने माधो की सहायता की, अंत में जब ईश्वरीसिंह और पहाड़ों पर फैला हुआ था। पानीपत की लड़ाई ने अपनी स्वयं हत्या कर ली तो होल्कर को ६४ के बाद होल्कर ने सोचा कि वे अपने राज्य को लाख रुपया और रामपुरा-भानपुरा और टोंक प्रान्त संगठित करें, किन्तु उनका कार्य ठीक से समाप्त नहीं इनाम में मिले। हो पाया और २० मई सन् १७६६ ई० को जब १७४५ ई० में रानोजी सिंधिया मरा तो आलमपुर नगर में उनका देहान्त हो गया। मल्हारराव मालवा में साढ़े चौहत्तर लाख की मल्हारराव एक अच्छे सिपाही थे, किन्तु अपने भूमि का मालिक था । १७५१-५२ में होल्कर ने युग के महादाजी सिंधिया की भाँति राजनीतिज्ञ न गाजीउद्दीन की सहायता हैदराबाद पर अधिकार थे, तो भी उनके राज्य का शासन बहुत ही अच्छा