जलवायु और वर्षा अक १-४] ओरछा या टीकमगढ़ राज्य ८१ के समीप है। वीर सागर झील वीर सागर गाँव के यहाँ के राजे सूर्यवंशी हैं। इनका स्रोत मनु समीप है। इसको महाराजा वीरसिंह देव ने बनवाया वैवस्वतु और महाराज इक्ष्वाकु से है। भगवान था । यादन्या सागर विन्दपुरा में है। कहा जाता है रामचन्द्र के ज्येष्ठ पुत्र लव के दो पुत्र गंगासेन और कि यहाँ महाराजा जनमेजय ने बड़ा भारी यज्ञ कनकसेन हुए। गङ्गासेन ने अपना राज्य इस राज्य में और बलिदान किया था । मदन सागर जातारा और इसके पूर्व की ओर स्थापित किया। उसके बाद में है। इसको मदन चन्देल वंशी वर्मन ने बनवाया के राजों का हाल ज्ञात नहीं । गङ्गा राजा ने जो इसी था । इसके सिवा जेरान, नन्दन वारा, बल्देवगढ़ कुल का था गयाजी का मन्दिर बनवाया। प्रद्युम्नारिका तालाब आदि हैं। राजा ने अक्षयवट का वृक्ष लाकर प्रयाग के किले पहाड़ी जङ्गल राज्य के अधिकांश भाग को में लगाया । और राजा इन्द्रद्युम्नारिका ने घेरे हुए है । इन बनों में केवल झाड़-झंखाड़ व छोटे जगन्नाथ जी का पुरी में मन्दिर बनवाया था। छोटे पेड़ हैं । यहाँ पर बड़े बड़े जानवरों के रहने कर्तराज जो इसी वंश के थे काशी की ओर गए योग्य जंगल नहीं हैं। इसलिए शेर तो शायद ही कभी और वहाँ के सर्दार दीवोदास को हराया और वर दिखलाई पड़ता है । चीते और तेंदुए पहाड़ियों पर नामक राजकुमारी से शादी किया और बनारस रहते हैं । नीलगाय, मृगा व काले हिरण इत्यादि राज्य की नींव डाली। इस वंश के वीसवें राजा का काफी संख्या में पाए जाते हैं। चिड़ियाँ भारतवर्ष के नाम कन्दपाल या करणपाल था। करणपाल के और स्थानों की भांति ही पाई जाती हैं। तीन पुत्र वीर, हेमकरण, अरिब्रह्म या अरिवर्मा थे। हेमकरण को उसके पिता ने उत्तराधिकारी बनाया और दूसरे दो पुत्रों को जागीर दी। ओरछा की जलवायु अच्छी नहीं है। खास हेमकरण ( १०४८-७१) कर उत्तर पश्चिम की जलवायु तो बहुत खराब है। करणपाल की मृत्यु के पश्चात् अरिब्रह्म और यहाँ के निवासी सदैव मलेरिया बुखार से बुरी वीर ने मिलकर हेमकरण को निकाल बाहर किया। तरह तङ्ग रहते हैं । जाड़े में यहाँ जाड़ा और गर्मी में हेम हताश होकर विन्ध्यवासिनी देवी के स्थान गर्मी अधिक पड़ती है । जाड़े के समय में मिरज़ई का पर जाकर पूजा करने लगा। उसने मनुष्य के सिरों पहनना तो बड़ा ही आवश्यक हो जाता है। जो के पाँच बलिदान किए। वैसाख सुदी चतुर्दशी मिरजई नहीं पहन सकते वह पैरे ( पियाल ) या सम्बत् ११०५, और सावन सुदी पंचमी १११२ को घास की सथरी बना कर सोते हैं। कोदो का देवी प्रसन्न हुई और उन्होंने वरदान दिया। कहते पियाल बड़ा गर्म होता है । जनवरी से आधे फरवरी हैं कि जब पाँचवाँ सिर राजा ने चढ़ाया तो देवी तक गजब का जाड़ा पड़ता है। मई के महीने में लू के दर्शन हुए और देवी ने राजा से पञ्चम विन्धेला ( लपट ) चलती है । लू के प्रभाव से बचने के लिये नाम रखने को कहा । इसी नाम पर इसका नाम लोग आम के पने का प्रयोग करते हैं। वर्षा ५ बुन्देला पड़ा। दूसरी कहावत यह है कि अन्तिम इञ्च सालाना होती है। बार राजा ने स्वयं अपना बलिदान करना चाहा इतिहास था। जैसे ही गले पर उसने तलवार लगाई वैसे ही देवी ने दर्शन दिया और वरदान दिया। तलवार वंशावली- की चोट से एक बूंद खून गिरा था। उसी बूँद पर •१०४८ के पूर्व यह राज्य भारतवर्ष के दूसरे बड़े इस वंश का नाम बुंदेला पड़ा। पहले वरदान की बड़े राज्यों के अधिकार में रहा। किन्तु करनपाल तिथि वैसाख चतुर्दशी अब भी बड़े समारोह से गहरवार ने राज्यों को संगठित किया । उसने अपने मनाई जाती है । और रविवार दिन होने के कारण ज्येष्ठ पुत्र हेमकरण को राजकाज सौंपा और दूसरे प्रत्येक रविवार को ढोल और नगाड़े बजाए जाते पुत्रों को जागीर दी। हैं। नवरात्रि का त्योहार विन्ध्यवासिनी देवी की ११
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