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पृष्ठ:भूगोल.djvu/८५

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भूगोल [वर्ष १६ सुजानसिंह- हुए । इस समय राज्य की दशा बहुत शोचनीय थी। पहाड़सिंह १६५३ में मर गया । उसकी मृत्यु के इस समय राजा की सवारी में केवल ५० सिपाही, बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र सुजानसिंह राजा हुआ। सुजान एक हाथी और २ घोड़े ही थे। तो भी राजा मरहठों ने अर्जर स्थान पर सागर बनवाया और इसकी के अधीन नहीं हुआ। माता ने रानीपुर बसाया। १६७२ में सुजान की मृत्यु अपने चतुर मन्त्री की सहायता से इसने हो गई। अपनी पुरानी जायदाद का कुछ भाग फिर अपने राज्य में मिला लिया। उदोतसिंह (१६८६-१७३६)- सुजान के बाद इन्द्रमती, यशवन्तसिंह और अंग्रेजों से संधि ( १८१२.) भगवन्त सिंह राजा हुए फिर १६८८ में उदोतसिंह २३ दिसम्बर सन् १८१२ ई० को राजा ने अंग्रेजों राजा हुए । एक बार जब उदोतसिंह ने शेर को अकेले से संधि कर ली। जिससे मरहठों के आक्रमण से मारा तो उसे बहादुरशाह ने अपने नाम की खुदी वह फुर्सत हो गया। हुई तलवार इनाम दी। इसके बाद ईद के शुभ अव धरमपाल सिंह और तेजसिंह, क्रियाजीत के सर पर खिलश्रत व पालकी भी दी। यह सब अब बाद राजा हुए फिर सुजानसिंह १८४१ में गद्दी पर तक राजदरबार में मौजूद हैं । १७०६ में उसे बादशाह बैठा । किन्तु धरमपाल की स्त्री लराप रानी ने गोद का फरमान और पहाड़सिंहपुर गांव मिला । इस समय लेना चाहा । इस पर राज्य में दो दल-नया मरहठों के आक्रमण के कारण राज्य का बहुत बड़ा राज्य और पुराना राज्य हो गया । पुराना भाग निकल चुका था १७३६ ई० में उदोतसिंह राज्य रानी की सहायता कर रहा था । सुजान- महोबा स्थान पर मरा । उसके बाद पृथ्वीसिंह राज- सिंह मजबूर होकर झांसी चला गया। दो साल के काज का मालिक हुआ। बाद वह लौटा, किन्तु फिर पृथवीपूर की लड़ाई में हार गया। गवर्नमेन्ट ऑफ इंडिया ने सुजानसिंह पृथ्वीसिंह (१६३६-५२)- की सहायता की और गद्दी पर बैठाया, किन्तु रानी मुग़ल बादशाह और राजपूत राजे दोनों मर- राज्य का काम देखती रही। अन्त में राजा को हठों के इस समय शिकार हो रहे थे । बरुश्रा सागर, जहर देकर मार डाला गया। मऊरानीपुर, झांसी आदि जिले राज्य से निकल गए। हमीरसिंह (१८५४-७२)- सावन्तसिंह (१७५२-६५- रानी ने अंग्रेज सरकार के कथनानुसार हमीर १७५२ में सावन्तसिंह राजा हुआ। १७५६ में सिंह दिगौरा के ठाकुर के पुत्र को गोद लिया । अहमद शाह ने भारत पर आक्रमण किया। इस रानी, हमीरसिंह के लड़कपन के समय तक राजकाज समय राज्य के और भाग के साथ अाठगढ़ी भी करती रही । १८५७ ई० में विप्लव हो गया। परन्तु राज्य से निकल गया। १७६१ में पानीपत की तीसरी रानी अंग्रेजों की सहायक बनी रही । ग्वालियर और लड़ाई हुई जिससे मरहठे कमजोर हो गए । १७६४ ललितपुर के अंग्रेज अफसर भाग कर टीकमगढ़ में बकसर की लड़ाई हुई जिससे अँगरेज भारतवर्ष आए। यह लोग पण्डित प्रेम नारायण, जो हमीर में सब से अधिक बलवान समझे जाने लगे। रीवा सिंह के गुरु थे, उनके यहाँ मेहमान रहे । से लौटते समय सावन्तसिंह ने शाहआलम की बड़ी दूसरी जुलाई को कैप्टन गार्डन, चॅदेरी के डिप्टी खातिर की। उसके बदले में उसे 'महेन्द्र' की पदवी और शाही झंडा मिला । १७६५ ई० में सावन्त की पाँचवीं जून को झांसी का हत्याकाण्ड हुआ। इस कलक्टर ने धन्यवाद का पत्र राजदरबार को लिखा। पर ओरछा की सेना ने मऊरानीपुर, पड़वाहा और हेतसिंह, मानसिंह और भारती चन्द्र के राज्य गढ़कोटा के परगनों में जाकर उपद्रव शांत किया करने के बाद सन १७७६ ई० में विक्रमाजीत राजा और बर्वा सागर पर अधिकार कर लिया। तीसरी मृत्यु हो गई।