पृष्ठ:भूगोल.djvu/८९

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मृत्यु हो गई। भूगोल [वर्ष १६ राजा दलपतराव बड़े सूरमा थे। वे बीजापुर, गोलकुण्डा, गवर्नर आजमउल्ला स्त्रों दतिया गया और उसने राजा से अदोनी, जिन्जी आदि स्थानों में लड़ाई पर शाह की ओर ७ लाख रु• लिये। १७४७ में मरहठों से संधि होगई । से भेजे गए । महरठों के मुताबिले में भी श्राप भेजे गए। और १६३ लाख सालाना की भूमि मरहठों को मिली । आपको शाह की ओर से राव की पदवी और एक जोड़ी १७६२ में राजा की मृत्यु दतिया में हुई। बड़े द्वार इनाम मिले जो फूल बाग में अब भी मौजूद हैं। शत्रुजीत ( १७६१-१८०१)- जाजी की लड़ाई में राजा घायल हुए और १६ जुलाई राजा विक्रमाजीत को ओरछा सिंहासन पर बैठाने में १७०७ को उनकी मृत्यु होगई। शत्रुजीत ने सेना सहित सहायता की। १८०१ ई. में रामचन्द्र (१७०७-३६)- सिउँधा किले की लड़ाई में राजा घायल हुथा और दलपतराव की मृत्यु पश्चात् भारतीचन्द्र ( रामचन्द्र के छोटे भाई ) ने गद्दी लेने का प्रयत्न किया । राव रामचन्द्र महाराज शत्रुजीत के ६ रानियाँ थीं। रानी आनन्द ने ओरछा के राजा उदोतसिंह से सहायता चाही । उसके कुंवरि से परीक्षित पैदा हुए और पाँच पुत्रहीन थीं। पश्चात् लड़ाई हुई। १७११ में भारतीचन्द्र मर गया। परीक्षित (१८०१-३६)- रामचन्द्र दिल्ली गया जहाँ उसकी बड़ी खातिर हुई और पिता की मृत्यु के बाद राजा परीक्षित गद्दी पर बैठे। उसे बहादुरशाह ने खिलअत दी और मंसबदार बनाया। उन्होंने अपने पिता की खोई हुई सम्पत्ति मरहठों से फिर लेनी जब फरुखसियर राजा हुए तो उन्होंने नवाब सुकराम चाही । भाँडर पर इन्होंने अपना अधिकार जमा लिया । खाँ को शाही फरमान, खिलअत और एक तलवार लेकर १८:४ में जब कैप्टन वैलो बुन्देलखण्ड का एजेन्ट दौरे पर राजा के पास भेजा। १७१४ ई० में राजा दिल्ली दर्वार था तो राजा नादीगाँव में उसके पास गया और उससे संघि गए। शाह ने हुकुम निकाला था कि सभी बिना किसी कर लो । १८१८ में लार्ड हेस्टिनज दतिया स्टेट में आये। हथियार के दर्बार में हाजिर हों, किन्तु रामचन्द्र अपनी राजा ने बड़ी खातिरदारी के साथ उसका स्वागत किया जिसके पोशाक में हथियार सहित दरबार में गये। शाह राजा की बदले चौरासी इलाका और इन्द्रगढ़ राजा को मिला। १८२४ बहादुरी देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और राजा की बड़ी ई० में राजा ने लार्ड अमरहर्ट से कानपुर में भेंट की। प्रसंशा की। १८२५. ई० में लार्ड कामवरमेश्रर दतिया में ठहरे और १७३२ में राजा कोड़ा जहानाबाद के घेरे में गया दर्बार किया। १८३६ ई० में राना ने विजय बहादुर नामी और घायल हुआ और मृत्यु होगई। उस राजा की मूर्ति बालक को गोद लिया जिसको अंग्रेज सरकार ने भी स्वीकार अब तक कोड़ा में खड़ी है। किया। इन्द्रजीत ( १७३६-६२)- १८२६ ई० में राजा लार्ड वैन्टिन्स के दर्बार में गए इन्द्रजीत रामचन्द्र के पौत्र राजगद्दी पर सरलता से नहीं और १८३६ में ७० साल की अवस्था में राजा का स्वर्गवास बैठ सके। राधा अपने पुत्र रघुनाथसिंह को गद्दी पर बैठाना चाहती थी। रानी सीताजू ने ओरछा महाराज से प्रार्थना विजयबहादुर ( १८३६-५७ )- की कि इन्द्रजीत की सहायता की जाय । महाराज ओरछा विजयवहादुर एक धार्मिक राजा थे इनके समय में कोई ने इन्द्रजीत (बच्चा) को एक सेना के साथ भेजा। वह खास बात नहीं हुई। १८५७ में राजा को मृत्यु हो गई। गद्दी पर बैठाया गया । लरकपन की हालत में रानी सीताजू भवानी सिंह ( १८५७-१९७१)- राज-काज करती रहीं। यह ओरछा राज्य के वंशज थे और रानी ने गोद लिया १७६० ई० में शाह आलम बुन्देलखण्ड देखने आया । था। रानी राज-काज करती थी। उसने अंग्रेजों की पूरी सहायता बाँदा में ओरछा और दतिया के राजे शाह से मिलने विप्लवकाल में की। उसकी मृत्यु के बाद सरी रानी प्रान आए । शाह ने इन्द्रजीत को एक सिंहासन, दो झण्डे और कुंवरि राज-काज की मालिकिन हुई। श्री बाजे दिए । १७४२ में नारूशङ्कर ने ओरछा राज्य पर विप्लव शांत होने के पश्चात् राज्य में गड़बड़ी पड़ी। आक्रमण किया और ओरछा व दतिया राज्य का बहुत बड़ा रानी विजयबहादुर के दोगले पुत्र अर्जुन सिंह को राजा भाग अपने राज्य में मिला लिया। उस साल मालवा का बनाना चाहती थी। ब्रिटिश सरकार ने फौज भेज कर रानी गया।