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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१०२

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पहिला हिस्सा
 

इन्दु । ईश्वर करे ऐसा ही हो, मगर

कला० । कल इन्द्रदेवजी यहां आयेंगे, उनसे राय करके कोई न कोई कार्रवाई बहुत जल्द की जायगी।

विमला० । मैं सोच रही हू कि तब तक उसकी ( पडोस वाली) घाटी पर कब्जा कर लिया जाय, उसका सदर दर्वाजा जिधर से वे लोग आते जाते हैं बन्द कर दिया जाय, उसके आदमी सव मार डाले जायं और उसका माल असवाव सव लूट लिया जाय, और इन बातो को खवर भूतनाथ को भी दे दी जाय।

इन्दु० । बहुत अच्छी बात है।

विमला० । और इतना काम में सहज ही में कर भी सकूँगी।

इन्दु•। सो कैसे?

विमला० । तुम देखती रहो सब काम तुम्हारे सामने ही तो होगा।

कला० । हा कल ही इस काम को करके छुट्टी पा लेना चाहिए जिसमें इन्द्रदेवजी आवें तो उनके दिन को भी कुछ ढाढस पहुचे।

विमला० । कल नही आज बल्कि इसी समय उस घाटी का रास्ता बन्द कर दिया जाय जिसमे लोग भाग कर बाहर न चले जायं।

इन्दु० । अगर ऐसा हो जाय तो बहुत ही अच्छी बात है, मगर दूसरे के घर में तुम इस तरह की कार्रवाई

विमला० । (मुस्कुरा कर) नही बहिन, तुम व्यर्थ इतना सोच कर रही हो । वात है कि जिस तरह यह स्थान और घाटी जिसमे हम लोग रहती है इन्द्रदेवजी के अधिकार में है, उसी तरह वह घाटी भी जिसमें भूतनाथ रहता है इस घाटो का एक हिस्मा होने के कारण इन्द्रदेवजी के अधिकार मे है । यह दोनों घाटी एक ही है, या यो कहो कि एक ही मकान का यह जनाना हिस्सा और वह मर्दाना हिस्सा है और इसलिए इन दोनो जगहों का पूरा पूरा भद इन्द्रदेवजी को मालूम है और उन्होने जो कुछ मुझे बताया है मैं जानती हू । इस बात को खबर भूतनाथ को कुछ भी नही