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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१०३

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भूतनाथ
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है। यह घाटी जिसमें रहती हू हमेशा बन्द रहती थी मगर उस घाटी का दर्वाजा बराबर न जाने क्यो खुला ही रहता था, शायद इसका सबब यह हो कि उस घाटी में कोई जोखम की चीज नहीं है और न कोई अच्छी इमारत ही है, अस्तु भूतनाथ यह भी नहीं जानता कि उस घाटी का दर्वाजा कहा है तथा क्योकर खुलता और बन्द होता है या इस स्थान का कोई मालिक भी है या नहीं । भूतनाथ को घूमते फिरते इत्तिफाक से या और किसी वजह से वह घाटी मिल गई मोर उसने उसे अपना बना लिया और जब यह खवर इन्द्रदेवजी को और मुझको मालूम हुई तब उन्होंने मेरी इच्छानुसार यह स्थान मुझे देकर यहाँ के बहुत से भेद मुझे बता दिए। वस अब मै समझती हू कि तुम्हें मेरी बातो का तत्व मालूम हो गया होगा ।

इन्दु० । हाँ अब मैं समझ गई, ऐसी अवस्था में तुम जो चाहो सो कर सकती हो।

विमला० । अच्छा तो मैं जाती हूँ और जो कुछ सोचा है उस काम को ठीक करती हूँ।

इतना कह कर विमला उठ खडी हुई और इन्दुमति तथा कला को उस जगह बैठे रहने की ताकीद कर घर के बाहर निकलने लगी, मगर इन्दु ने साथ जाने के लिए जिद्द को और बहुत कुछ समझाने पर भी न मानी, लाचार विमला इन्दु को साथ ले गई और कला को उसी जगह छोड गई।

भूतनाथ का साथ छोड कर प्रभाकरसिंह के इस घाटी में आते का हाल हमारे पाठक भूले न होगे । उन्हे याद न होगा कि भूतनाथ को घाटी के अन्दर जाने वाली मुरग के बीच में एक चौमुहाना था जहा पहुंच कर प्रभाकरमिह ने भूतनाथ और अन्दुमति का माय छोडा था और कला तथा विमना के माय दूसरी गह पर चल पडे थे । आज ईन्दुमति को साथ लिए हुए विमला पुन उसी जगह जाती है।

उम मुरग के अन्दर वाले चौमुहाने मे एक रास्ता तो भूतनाथ की घाटी