पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१०६

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पहिला हिस्सा
 



और आश्चर्य के साथ देखता हुआ बोला-"आह । मेरो रानी तुम यहाँ कहाँ ? तुम्हारे लिए तो हमारे गुरुजी बहुत परेशान है।"

इस जगह वखूबी उजाला था इसलिए इन्दु ने भोलासिंह को ओर भोलासिंह ने इन्दु को वखूबी पहिचान लिया । इन्दु पर क्या क्या मुसीबतें गुजरी और प्रभाकरसिंह कहाँ गए इन बातो की खबर भोलासिंह की कुछ भी न थी, इसीलिए वह इस समय इन्दु को देख कर खुश हुआ और ताज्जुव करने लगा। इंदु ने धीरे से विमला को समझाया कि यह भूतनाथ का शागिर्द हैं।

इन्दु उसे पहिचानती थी सही मगर नाम कदाचित् नही जानती थी। वह उसकी बात का जवाब दिया ही चाहती थी कि विमला ने उंगली दवा कर उसे चुप रहने का इशारा किया और कुछ आगे बढ कर कहा, "तुम्हारे गुरुजी ने उन्हें मोन के पंजे से छुडाया और इनकी बदौलत उसो आफत से मेरी भी जान बची है।"

भोला । गुरुजी कहां है।

विमला । हमारे साथ आयो और उनसे मुलाकात करके सुनो कि उन्होने इन बीच में कैसे कसे अनूठे काम किए है।

भोला०। चलो चलो, मैं बहुत जल्द उनसे मिला चाहता हूं।

विमला ने इन्दु को अपने आगे किया और भोलासिंह को पीछे आने का इशारा करके अपनी घाटी की तरफ रवाना हुई।

विमला इस सुरंग का सदर दर्वाजा बंद न कर सकी, खैर इसकी उसे ज्यादे परवाह भी न थी। चौमुहाने से जो भूतनाथ की घाटी की तरफ रास्ता गया था उसी को बन्द कर उसने सन्तोष लाभ कर लिया । विमला के पीछे पीछे चल कर भोलासिंह उस चौमुहाने तक पहुँचा मगर जब विमला अपनी घाटी की तरफ अथार्थ सामने वाले सुरंग में रवाना हुई तब भोलासिंह रुका और बोला, "इस तरफ तो हमारे गुरुजी कभी जाते न थे और उन्होंने दूसरो को भी इधर जाने को मना कर दिया था! आज वे इधर