सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भूतनाथ
११०
 



जायगे और कुछ देर बाद आपसे आप बन्द भी हो जायगे मगर पुन दूसरो वार केवल धक्का देने से वह दर्वाजा न खुलेगा असल पेंच घुमाने की जरूरत पडेगी। दोनो दरवाजो के दोनो तरफ एक हो ढंग के तिलिस्मी पेंच दर्वाजा खोलने और बंद करने के लिए बने हुए थे और इसका हाल भूतनाथ को कुछ भी मालूम न था। इसके अतिरिक्त उस सुरंग का सदर दर्वाजा भी ( जिसके अन्दर घुसने के बाद चौमुहानी मिलती थी ) बंद हो सकता था और यह बात विमला के अधीन थी। केवल इतना ही नही, उस चौमुहाने से भूतनाथ की घाटी की तरफ जाने वाले सुरंग मे भी एक दर्वाजा (इन दोनो सुरंगो की तरफ) था और उसका हाल भी यद्यपि भूतनाथ को तो मालूम न था मगर विमला उसे भी बंद कर सकती थी।

इन्दु को साथ लिए हुए विमला उसी सुरंग में घुसी और उस सुरंग के भेद इन्दु को समझाती तथा दर्वाजा खोलती और बंद करती हुई उसी चौमुहाने पर पहुंँची जिसका हाल ऊपर कई दफे लिखा जा चुका है और जहा प्रभाकरसिंह ने इन्दु का साथ छोडा था। वहा पहुँच कर कुछ देर के लिए विमला अटकी और आहट लेने लगी कि भूतनाथ की घाटी में आने वाला कोई आदमी तो इस समय इस सुरंग में मौजूद नहीं है। जब सन्नाटा मालूम हुआ और किसी आदमी के वहाँ होने का गुमान न रहा तव वह भूतनाथ वालो घाटी की तरफ जो रास्ता गया था उस सुरंग मे घुसी और दस बारह कदम जाने वाद दीवार के अन्दर बने हुए किसी कल पुरजे को घुमा कर उस सुरंग का रास्ता उसने बन्द कर दिया। लोहे का एक मोटा तस्ला दीवार के अन्दर ने निकाला और रास्ता बन्द करता हुआ दूसरी दीवार के अन्दर कुछ घुस कर अटक गया।

इसके बाद विमला सुरंग के सदर दरवाज़ा पर दर्वाजा वन्द करने के लिए पहुची ही थी कि सुरंग के अन्दर घुसते हुए भूतनाथ के शागिर्द भोलासिंह पर निगाह पडो और उसने भी इन दोनों औरतो को देख लिया। वह इन्दु को अच्छी तरह देख चुका था अस्तु निगाह पडते ही पहिचान गया