पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/११०

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दूसरा भाग
 



निकल जाना ही कम कवाहट की बात नहीं है, और इससे भी ज्यादे बुरी बात यह हुई कि हमारा भेद उसे मालूम हो गया। हाय ऐसी रात में किसको हिम्मत पड सकती है कि अकेले वहा जाकर भूतनाथ का हाल मालूम करे? अगर वह छूट गया होगा तो जरूर उसी जगह कही छिपा होगा, ताज्जुब नही कि सूरज निकलते निकलते तक वह कोई आफत...

विमला०। मेरा भी यही खयाल है! (चन्दो के पास जाकर ) हाय शैतान की बच्ची, तूने यह क्या किया! हाय, अगर तू जीती रहती तो तुझसे पूछती कि 'दुष्ट, तूने इतना ही किया कि कुछ और।'

चन्दो यद्यपि मौत के पंजे में फँसी हुई थी और उसकी जान बहुत जल्द निकलने वाली थी मगर वह कला और विमला की बातें सुन रही थी, यद्यपि उममे जवाब देने की ताकत न थी । उसने विमला की आखिरी बात सुन कर आखें खोल दी, विमला की तरफ देखा और इस प्रकार मुँँह खोला मानो कुछ कहने के लिये वेचैन हो रही है, बहुत उद्योग कर रही है, मगर उसमें इतनी शक्ति न रही, उसकी आखें पुनः बन्द हो गई और अब वह पूरी तरह से बेहोश हो गयी । देखते देखते दस पाँँच हिचकियां लेकर उसने विमला और कला के सामने दम तोड़ दिया।

अब कला और विमला को यह फिक्र पैदा हुई कि पहिले इसे ठिकाने पहुँँचाया जाय या चल कर भूतनाथ की खबर ली जाय, मगर इन्दुमति को राय हुई कि इन दोनो कामो के पहिले बँगले की हिफाजत की जाय (जो इस घाटी के बीच में था और जहां प्रभाकरसिंह पहिले पहिल पहुँचे थे) क्योंकि उसमें बहुत सी जरूरी चीजें रखी हुई है और साथ ही उसकी जाँँच करने से बहुत से भेद भी मालूम हो सकते हैं।

इन्दू की इस राय को विमला और कला ने बहुत पसन्द किया था और तीनों औरते हो और जरूर चीजों से अपने को सजा कर गुप्त राह बँगले की तरफ रवाना हुई।

इस बँगले का हाल हम पहिले खुलासा तौर पर लिख चुके हैं, इस के