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दूसरा भाग
 


नहीं है क्योकि उस पर मुझे विश्वास न होगा, हा यदि मुझे दलीपशाह के पास पहूँचा दो तो मैं यहाँँ का पूरा पूरा भेद तुम्हें पता सकती हूं बल्कि हर तरह से तुम्हारी मदद भी कर सकती हूँँ।

गदा०। (चौंक कर)दलीपशाह! दलीपशाह से और तुमसे क्या वास्ता?

कला०। वे मेरे रिश्तेदार है और यहां से भाग फर मैं उनके यहा अपनी जान बचा सकती हूँ।

गदा०। अगर ऐसा ही है तो तुम स्वयं उसके पास क्यो नही चली जाती।

कला०। पहिले तो मुझे यहाँँ से भागने की कोई जरूरत ही नहीं, भागने का ख्याल तो सिर्फ इसी सबंध से होगा कि तुम्हें यहाँँ के भेद बताउँगी, दूसरे यह कि आज कल न जाने किस कारण से उन्होंने अपना मकान छोड़ दिया है और किसी दूसरी जगह जाकर छिप रहे है।

गदा०। अगर किसी दूसरी जगह जाकर छिप रहे है तो भला मुझे क्योकर उनका पता लगेगा?

कला०। तुम्हें उनका पता जरूर मालूम होगा क्योंंकि तुम उनके साढ़ू और दोस्त भी हो।

गदा०। यह बात तुम्हें क्योंकर मालूम हुई?

कला०। भला मैं दलीपशाह के नाते की होकर यह नहीं जानूंंगी कि तुम उनके कौन हो?

गदा०। (आश्चर्य के साथ कुछ सोच कर) मगर तुम्हारी बात सच है तो तुम मेरो भो कुछ नातेदार होवोगी।

कला०। जरूर ऐसा ही है, मगर यहाँँ में इस बारे में भी कुछ न कहूँगी, दलीपशाह के मकान पर चलने ही से तुम्हें सब हाल मालूम हो जायगा तथा और भी कई बातेंं ऐसी मालूम होगी जिन्हें जान कर तुम खुश हो जाओगे। इन्हीं बातों का ख्याल करको और तुम्हें अपना नजदीकी नातेदार समझ के मैं चाहती हूँ फि तुम्हें इस घाटो के बाहर कर दूँँ और खुद भी भाग जाऊँँ नहीं तो यहा रह फर तुम्हारी जान किसी तरह नहीं बच