पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१२६

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२१
दूसरा भाग
 



एक छोटा दर्वाजा था। कला ने गदाधरसिंह की तरफ देख के कहा, "यही उस खोह का दर्वाजा है जिस राह से हम लोगो का आना जाना होता है, अब मैं इसके अन्दर घुसती हूँँ, तुम मेरे पीछे चले जायो।"

गदा । जहा तक मेरा ख्याल है मैं कह सकता है कि इस खोह के अन्दर जरूर अन्धकार होगा। कही ऐसा न हो कि तुम आगे चल कर गायब हो जाओ और मैं अन्धेरे में तुम्हें टटोलता पुकारता और पत्थरों से ठोकरें खाता हुआ परेशानी में फंस जाऊँ, क्योकि नित्य माने जाने के कारण यह रास्ता तुम्हारे लिये खेल हो रहा है। इसके अतिरिक्त यह रास्ता एकदम सीधा कभी न होगा, जरूर रास्ते में गिरह पडी होगी, या तो कहा जाय कि इसके बीच में दो एक तिलिस्मो दर्वाजे जरूर लगे होंगे।

कला०। नहीं नहीं, तुम बेखौफ मेरे पीछे चले आओ, यह रास्ता बहुत साफ है।

गदा०। नही मै ऐसा बेवकूफ नही हूँ,बेहतर होगा कि तुम अपनी कमर में मुझे कमन्द बांधने दो, मैं उसे पकडे हुए तुम्हारे पीछे पीछे चला चलूंगा।

कला०। अगर तुम्हारी यही मर्जी है तो मुझे मंजूर है।

आखिर ऐसा ही हुआ, गदाधरसिंह ने कला को कमर में कमन्द बांधी और उसे आगे चलने के लिये कहा और उस कमन्द का दूसरा सिरा पकड़े हुए पीछे पोछे आप रवाना हुआ। गदाधरसिंह को इस बात का बहुत ख्याल था कि सुरंग की राह से आने जाने का रास्ता किसी तरह मालूम कर ले, मगर कला किसी दूसरी ही फिक्र में थी, वह यह नहीं चाहती थी कि इसी सुरंग के अन्दर भूतनाथ अर्थात् गदाधरसिंह को फंसा कर मार डाले, इस समय उसे इस सुरंग से निकाल देना ही वह पसन्द करती थी, अस्तु वह धीरे धीरे सुरंग के अन्दर रवाना हुई।

पन्द्रह या बीस कदम आगे जाने के बाद सुरंग में एकदम अन्धकार मिला इसलिये गदाधरसिंह को टटोल टटोल कर चलने की जरूरत पड़ी मगर कला तेजी के साथ कदम बढ़ाये चली जा रहो थी और एक तौर पर