पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१३९

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भूतना भी इस समय उससे किसी तरह की उम्मीद न रखनी चाहिये, क्योकि भव हम लोग दयाराम के खयाल से जमना पौर सरस्वती के पक्षपाती हो गये है, अस्तु व उसके लिये कोई दूसरा ही बन्दाबस्त' करना चाहिए। अगर उस खोह का रास्ता मुझे मालूम होता तो मै जमना और सरस्वती को भी इस वात की खबर देता । खैर, अब मुझे दल पशाह के पास चलना चाहिए भोर उससे मदद मागनी चाहिये, क्योकि मै प्रक्षेला भूतनाथ का मुकाबला नही कर सकता । दलीपशाह जरूर मेरी मदद करेगा, उस पर मेरा जोर भी है और उसने मेरे साथ अपनी मुहब्बत भी दिखाई है, मगर पहिले अपने आदमियो को समझा देना चाहिये जो अभी तक हम लोगो का इन्तजार कर रहे होगे!" इत्यादि तरह तरह की बाते सोचता हुमा गुलाबसिंह आगे की तरफ वढा चला जाता था । लंगभग एक या डेढ़ कोस गया होगा कि सामने से दो सिपाही ढाल तलवार लगाए दो घोडों को बागडोर थामे प्राते हुए दिखाई पडे । जब वे गुलावसिह के पास पहुचे तो सलाम करके खडे हो गये और गुलाबसिंह भी रुक गया। गुलाव० । तुम लोग कहा जा रहे हो ? '

  • एका पाप ही की खोज में जा रहे है,क्योकि रात भर इन्तजार करके

हम लोग में पड़ गए होगे, गुलाबः । (वात काट कर) बेशक तुम लोग तरद्द मगर क्या करें लाचारी है, अच्छा यह कहो कि वाकी श्रादमी कहा है ? एक० । प्रभी तक सब उसी जगह अटके हुए है। गुलाब ० । प्रच्छा एक काम करो, तुम घोडा यही छोड दो मोर लोट जामो. हमारे ग्रादमियो को इत्तिला दो कि हमारे घर पर चले जाय, पुराने घर पर नहीं, आजकल जहां हम रहते हैं उस घर पर चले जाय,और जव तक हम या प्रभाकरसिंह वहाँ न पावें तब तक कही न जाय । मैं इस घोहे पर सवार होकर किसी काम के लिए जाता है । (दूसरे सिपाही की तरफ देष कर) तुम इस दूसरे घोर्ट पर सवार हो लो मौर मेरे साथ साथ चलो ।