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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४२

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३७ दूसरा भाग को मारो मत, बल्कि उसे जहाँ तक बने सतामो ओर दुःख दो, भला वह समझे तो सहो कि मेरे किस कर्म का यह क्या फल मिल रहा है ? मगर एक यात मोर विचारने के योग्य है, वह यह कि इस तरह पर दुश्मन से बदला लेना कुछ सहज काम नहीं है। इसके लिये बडे ही उद्योग, चडे हो साहस, और बडे हो धर्य को जरूरत है और इसके लिये अपने चित्त के भाव को बहुत ही छिपाना पडता है, सो ये बातें मनुष्य से जल्दो निबहती नहीं, इसी से कई विद्वानों का मत है कि 'दुश्मन को जहाँ तक हो सके जल्द मिटा देना चाहिये, नही तो किसी विचार से तरह दे देने पर कहीं ऐसा न हो कि मौका पाकर वह बलवान हो जापे घोर तुम्ही को मरने कम्जे में कर ले ।' यह सच है परन्तु यदि ईश्वर सहायक हो मोर मनुष्य धैर्य के -साथ निर्वाह कर सके तो इस बदने से वह पहिले हो बदला अच्छा है जिसे में ऊपर वयान कर चुका है। भूतनाप के साथ इस तरह का बर्ताव करने से एक फायदा यह भो हो सकता है कि सुच्चे पोर झूठे मामले को जाच भी हो जायगो। कदाचित् उसने तुम्हारे पति को धोखे में ही मारा हो, जान बूझ कर न मारा हो जैसा कि उसका कथन है! भूतनाथ ऐसाबुद्धिमान पोर धुरन्धर ऐयार यदि अपने कर्मों का प्रायश्चित पाकर सुघर जाप और प्रच्छो राह लगे दो मच्छो ही बात है क्योकि ऐसे बहादुर लोग दुनिया में कम पैदा होते हैं। इन्द्रदेव को माखिरो पात कला पौर विमला को पसन्द न माई मगर उन्होंने उनको खातिर से यह जरूर कह दिया कि-'मापका कहना ठीक है।' कला । सैर पर तो भूतनाय को मालूम हो हो गया है कि नमना और सरस्वती जोती है, देखें हम लोगों के लिए क्या उद्योग करता है। इन्द्रदेव० । कोई चिन्ता नहीं, मालूम हो गया तो होने दो, तुम होशि- यारो के साथ इस घाटो के अन्दर पडो रहो, किसो को यहां का रास्ता मत रतामो और जब कमो इस पाटो के बाहर जामो तो उन अद्भुत हों को पहर मपने साप रस्सो को मैंने तुम लोगों को दिये है।