पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४३

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RU - भूतनाथ बिमला। जो प्राज्ञा। कलो० । महां का रास्ता अभी तक तो सिवाय प्रभाकरसिंह के और किसी नए आदमी को मालूम नहीं हुमा, मंगर इधर प्रभाकरसिंहजी की जुवानी यह जाना गया है कि हम लोगों का कुछ हाल उन्होने अपने दोस्त गुलाबसिंह को जरूर कह दिया है, मगर यहाँ का रास्ता या इस घाटी को असल भिद उनको भी नहीं बताया है। , इन्द्रा (कुछ सोच कर) प्रभाकरसिंह बुद्धिमान प्रादमी हैं, उन्होने जो कुछ किया होगा उचित किया 'होगा, उनके विषय में तुम लोग चिन्ता मत करो! इसके अतिरिक्त गुलीवसिंह पर मैं भी विश्वास करता है। वह नि सन्देह नमका सच्चा हितैषी है और साथ ही इसके साहसी और वहादुर भी है। यदि गुलाबसिंह को वे इस घाटी के अन्दर ले भी प्रावे तो कोई चिन्ता की बात नहीं है। (मुस्कुरा कर) और बेटी तुमने तो प्रभाकर सिंह को यहाँ का राज्य हो दे दिया, यहाँ के तिलिस्म को तालो ही दे दी है। बिमला० । सो पापको प्राज्ञा से, मैंने अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कियों, परन्तु फिर भी पापकी मदद पाये विना वै कुछ कर न सकेंगे । हाँ एक बात कहना ' 'इन्द्रदेवः। वह क्या? विमला । भूतनाथ की घाटी का रास्ता मैंने 'वन्द कर दिया है, अर्वे भूतनाथ अपने स्थान पर'मही पहुंच सकता और उसके सायो और दोस्त लोग उसी के अन्दर पडे पडे सहा करेंगे। यह कह कर विमला ने अपनी बेईमान लोडी चन्दो की मौत मौर भूतनाथ को घाटी का दर्वाजा वन्द कर देने तक का हाल पूरा पूरा इन्द्रदेव से बयान किया। इन्द्र० . (कुछ सोच फर) मगर यह काम तो तुमने अच्छा नही किया.! तुम लोगों को मैंने इस घाटी में इसलिए स्थान दिया था कि अपने दुश्मन भूतनाथ का हाल बाल. वरावर जाना करोगी वह इस घाटी के पडोस में 7 2 i तो में भूल ही गई। र 11 & )