पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४६

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४१ दूसरा भाग दयाराम का बदला लेने के लिए उद्योग कर रही है। वास्तव में वह घाटी भो बढी विचित्र है। नि.सन्देह वह तिलिस्म है पोर अगर मेग खयाल ठीक है तो वहां की रहने वालिया पडोस पडोस की भो घाटियो का हाल जानती होगी, बल्कि मेरी इस घाटो से सम्बन्ध रखती हो तो ताज्जुव नही ! तीसरा० । पारका यह विचार बहुत ठोक है । मगर वास्तव में जमना और सरस्वती जीती हैं और उसी घाटी में रहती हैं तो निःसन्देह यह काम उन्हीं का है और उन्ही लोगों में से किसी को गिरफ्तार करने से हमारा काम निकल सकता है। भूत० । वेशक, और मैं उन लोगों में से किसी न किसी को जरूर गिर. फ्तार करूगा। एक० । आप जब गिरफ्तार होकर यहां गये तो वहाँ की अवस्था देख कर पौर उन लोगों की बातें सुन कर जमना भौर सरस्वती के विषय में मारने क्या विश्वास किया ? भूत । मुझे विश्वास होता है कि जरूर चे दोनो जीती है। दूसरा० । तो यह घाटो उन लोगो को किसने रहने के लिये दो मोर उन लोगों का मददगार कौन है ? भूत० । यही तो एक विचारने की बात है। मेरे खयाल से अगर इन्द्र. देव उन दोनो के पक्षपाती बने हों तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि दयारामजी मेरे हाप से मारे गये इस बात को दुनियामें मेरे सिवाय सिर्फ दो ही मादमी पोर जानते है, एक तोदलीपशाह दूसरा शम्भू । शम्भू तोइन्द्रदेव का शागिर्द ही ठहरा पौर दलीपशाह इन्द्रदेव का दिली दोस्त । यद्यपि दलीप- शाह मेरा नातेदार है और उसने इस बात को छिपा रसने के लिये मुझसे कसम भी साई है मगर मब मालूम होता है कि उसने अपनी कसम तोड़ दी मोर इस भेद को खोल दिया। इस बात का सबसे बड़ा सबूत एक यह है क जब में कैद होकर उस घाटी में गया था तो एक पोरत ने जोर देकर मुझमे क्यान किया था कि तुमने दयाराम को मारा है भोर इसके सबूत में