पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४५

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४० भूतनाथ बठवां बयान दिन तीन पहर से ज्यादे चढ़ चुका है। इस समय हम भूतनाथ को एक घने जगल में अपने तीन साथियो के साथ पेड के नीचे बैठे हुए देखते है । यह जगल उस घाटी से बहुत दूर न था जिसमें मूतनाथ रहता था पौर जिसका रास्ता विमला ने बन्द कर दिया था। भूत० । ( अपने साथियो से ) मुझे इस बात का बडा हो दु ख है कि मेरे साथी लोग इस घाटी में कैदियो की तरह बन्द होकर दुख भोग रहे है। यद्यपि यहां पानी की कमी नहीं है और खाने के लिए भी इतना सामान है कि वे लोग महीनों तक निर्वाह कर सकें, मगर फिर भी कब तक माखिर जब यह सामान चुक जायगा तो फिर वे लोग क्या करेंगे? एक० । ठीक है मगर साथ ह इसके यह खयाल भी तो होता है कि शायद हमारे दोस्तों को भी तकलीफ दी गई हो ! भूत० । हो सकता है लेकिन इस विचार पर मैं विशेष भरोसा नही करता, क्योंकि दर्वाजा बन्द कर देना सिर्फ एक जानकार मादमो का काम है मगर हमारे साथियों से लड कर बीस या पचीस आदमी भी पार नही पा सकते। दूसरा० । है तो ऐसी ही वात, इसी से आशा होती है कि अभी तक वे सब जीते होंगे, मस्तु जिस तरह हो सके उन्हें बचाना चाहिए । भूत । मैं इसी फिक्र में पड़ा हू और सोच रहा हूं कि उनको बचाने के लिए क्या इन्तजाम किया जाय । एक० । पहिले तो उसका पता लगाना चाहिये जिसने दर्वाजा वन्द कर दिया है। भूत । हाँ मौर इस विषय में मुझे उन्हीं पौरतो पर शक होता है जो इस पटोस वाली घाटी में रहती हैं, जहां में कैद होकर गया था, भोर जहाँ सुनने में पाया कि जमना पौरसरस्वतीप्रभी तक जीती जागती हैं पोर मुझसे