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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४८

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४३ दूसरा भाग. में इस बात को जरा भी न सोचू गा कि वह मेरा नातेदार है, पयोकि उसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और मेरी वर्वादी के पोछे लग गया। मुझे यह भी खबर लगी है कि दलीपशाह ने जमानिया के दारोगासे भी दोस्ती पैदा कर ली है और उसकी तरफ से भी मुझे सताने के लिये तैयार है। एक० । ऐसी अवस्था में जरूर दलोपशाह का नाम निशान मिटा देना चाहिये क्योकि जब तक वह जीता रहेगा आप बेफिक्र नहीं हो सकते, साथ ही इसके शम्भू को भी मार डालना चाहिये । उन दोनो के मारे जान पर श्राप इन्द्रदेव को अच्छी तरह समभा लेंगे और विश्वास दिला देंगे कि आपके हाथो से दयाराम नही मारे गये और अगर दलोपशाह और शम्भू- ने उनसे ऐसा कहा है तो वह वात विल्कुल ही झूठ है । भूतनाथ० । ठीक है, मै जरूर ही ऐसा करूगा, लेकिन इतने पर भी काम न चलेगा और यह बात मशहूर ही होती दिखाई देगी तोलाचार होकर मुझे मौर भी अनर्थ करना पडेगा; नाता और रिश्ता भूल जाना पड़ेगा,दोस्ती मोर मुरीवत को तिलाजुली दे देनी पडेगी; और जिन जिन को यह बात मालूम हो गई है उन सभी को इस दुनिया से उठा देना पड़ेगा। एक० । जमना सरस्वती इन्दुमति और प्रमाकरसिंह को मी? भूत० । बेशक, बल्कि गुलाबसिंह को भी! दूसरा० । यह बडे कलेजे का काम होगा! भूत । मुझमे बढ कर कटिन और वठा कलेजा किस का होगा जिसने लटके लडकी और स्पो फो भी त्याग दिया है, मगर अफसोस, इस समय मैं पाप पर पाप करने के लिए मजबूर हो रहा है। एक० । र मह बताइये कि सबने पहले कोन काम किया जायगा मोर इम स्मय माप हम लोगो को पया हम देते हैं ! भृत० । सबसे पहिले मैं अपने दोस्तों को छुटाऊंगा पोर इसके लिए उस पडोस को घाटी में रहने वाली औरती में से किसी को गिरफ्तार करना चाहिये । सैर अब बताता हूँ कि तुम लोगों को क्या करना चाहिए। (चौंक .