पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१४९

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भूतनाथ कर ) देखो तो वह साधू कौन है । ऐसा गुमान होता है कि इसे मैंने कभी देखा है । यह तो हमारे उसी खोह की तरफ जा रहा है । पहिले इसी की सुध लेनी चाहिये फिर बताएंगे कि तुम लोगो को क्या करना चाहिये । यह साधू जिस पर भूतनाथ की निगाह पडी बहुत ही बुड्ढा और तपस्वी जान पड़ता था। इसके सर मोर दाढ़ो के बाल बहुत ही घने और लंबे थे। लम्बा कद, वृद्ध होने पर भी गठीला बदन मोर चेहरा रोप्रावदार मालूम होता था। कमर में क्या पहिरे हुए था इसका पता नही लगता था क्योकि इसके बदन में बहुत लम्बा गेरुए रग का ढोला कुरता था जो घुटने से एक वित्ता नीचे तक पहुच रहा था, मगर साथ हो इसके यह जान पडता था कि उसने अपने तमाम बदन में हलको विभूत लगाई हुई है। इसके अतिरिक्त इसके पास मोर किसी तरह का सामान दिखाई न देता था अर्थात् कोई माला या सुमिरनी तक इसके पास न थी। भूतनाय अपने साथियों को इसी जगह रहने का हुक्म देकर घोरे धीरे उस साधू के पीछे रवाना हुमा मगर उस लापरवाह साधू को इस बात का कुछ भी खयाल न था कि उसके पीछे कोई पा रहा है। थोड़ी ही देर में वह साधू उस खोह के मुहाने पर जा पहुंचा जिसमें भूतनाथ रहता था। जब यह खोह के अन्दर घुसने लगा तब भूतनाथ भी लपक कर उसके पास पहुंचा। साधू० । ( भूतनाथ को देख कर ) तुम कौन हो ? भूत । जी मेरा नाम गदाधरसिंह ऐयार है। साधू० 1 ठीक है, मैं तुम्हारा नाम सुन चुका हूं, बहुत अच्छा हुमा कि तुमसे मुलाकात हो गई, मालूम होता है कि तुम्ही वे इस घाटी में दखल जमा रपसा है और जो लोग इसके अन्दर है वे सब तुम्हारे ही सगी साथी है ? भूप० । जी हां, घात तो ऐसी हो है। साधू०। मैं इसी फिक्र में पड़ा हुमा था और सोच रहा था कि इस घाटी में किसने अपना दखल जमा लिया है । शायद तुम्हें यह बात मालूम नहीं