दूसरा भाग इन्द्र० । ( दवो जुवान से ) हां वह लालची तो जरूर है मगर अभी नई जवानी है सम्भव है प्रागे चल कर सुघर जाय । दलीप० । (हंस कर) जो हा ! बात तो यह है कि वह कम्मरुत प्रापके सामने ढोग रचता है और दयारामजी के मामले पर उदासी दिखना कर कहता है कि अप में दुनिया ही छोड दूंगा, मगर में इस बात को कभी नही मान सकता, हा उसका यह कहना शायद सच हो कि दयारामजी के मामले में उसने धोखा खाया। इन्द्र० । भाई उसकी यह बात तो जरूर सच है, वह जानबूझ कर दयारामजी को कदापि नहीं मार सकता। दलीप० । जी हा में भी यही सोचता हूँ मगर श्राप देख लीजियेगा कि कुछ दिन के बाद वह हमारे मोर आपके ऊपर भी सफाई का हाथ जरूर फेरेगा। प्रापके ऊपर चाहे मेहरवानी भी कर जाय क्योंकि पापसे डरता है और उसे विश्वास है कि आप ऐयारी में किसी तरह उससे कम नहीं हैं, मगर मुझे तो कभी न छोडेगा। इन्द्र० । प्रजी भविष्य में जैसा करेगा वैसा पावेगा इस समय तो वह हमारा पापका किसी का भी सूरवार नही है ? दलीप० 01 ( खिलखिला कर हँसने के बाद धोरे से ) तब यो पापने वेचारे के पीछे जमना और सरस्वती को लगा दिया है ? इन्द्र० । फेवल उन दोनों का प्रण पूरा करने के लिए मैने यह कारं- वाई कर दी है नहीं तो तुम ही सोचो कि वेपारी लड़निया उसका क्या विगार सफती है! दलोप० । तो पाप उन लहरियों के माप घोखेबाजो का काम करते है, मुच्चे दिल से उनको मदद नहीं करते ! इन्द्र० । (दांत से जुपान दवाने के याद) नहीं नही, मैं जरूर उनकी मदद करता हूँ मगर मेरो इच्छा यही है कि गदाधरसिंह मारा न जाय घोर दोनों लड़कियों को ममिलापा भी पूरी हो जाय ।
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