पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१६४

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५७ दूसरा भाग वह दु ख भोग कर सुधर सकता है, अगर उसकी यातना की जाय तो ताज्जुब नही कि वह राह पर पा जाय । दलीप० । तो क्या वेचारी जमना प्रोर सरस्वती ही के हाथ से उसकी यातना कराइयेगा? इन्द्र० । नही नही, वे वेचारियां भला क्या कर सकेंगी । में प्रब आपके पास इसी लिये आया हूं कि इस काम में प्रापसे मदद लू। दलीप० १० । वह क्या ? मै आपके लिए हर तरह से तैयार हूं। इन्द्रानाप जानते ही हैं कि मैं अपना स्थान पिसी तरह छोट नहीं सकता। दलीप० । वेशक ऐसा ही है । इन्द्र० । इसलिए मैं चाहता था कि पाप कुछ दिनो तक उन लडकियो के साथ रह कर उनकी मदद करें मगर देखता हूँ कि पार वेतरह गदायर- सिंह पर टूटे हुए है । मैं यह नहीं चाहता कि वह जान से मारा जाय । दलीप०।तो क्या आप समझते है कि मै प्रापको इच्छाके विपरीत चलूंगा' इन्द्र० । नहीं नहीं, ऐसा तो मुझे स्वप्न में भी गुमान नही हो सकता, हो यह सोचता हूँ कि मेरा कहना आपकी इच्छा के विरुद्ध कही न हो। दलीप । चाहे जो हो मगर मैं आपकी बात कभी न टालूगा, इसके अतिरिक्त प्राप जानते ही है कि वह मेरा रिश्तेदार है, नसको ग्त्री शान्ता है तो मेरी साली मगर मैं उसे बहिन की तरह मानता और प्यार करता हूँ, ऐमो अवस्था में मैं काय चाहूंगा कि गदाधरसिंह मारा जाय और उसकी स्त्री विधवा होकर मेरो प्राखो के सामने पाये। मगर बात को असल है वह जरूर कहने में भाती है। इन्द्रः । ठोका है मगर गदाधरसिंह सुद अपने पैर में कुल्हारो मार रहा है, गैर जमा करेगा वैठा पायेगा। हम लोग जहां तक हो सकेगा उसके सुधारने की कोशिश करेंगे मागे जो ईश्वर की मर्जी। दलोप० । र मुझे पाप क्या काम मुपुर्द करते हैं मो कहिये ? इन्द्र० । मैं चाद । हूँ कि पाप कुछ दिनों तक जमना गौर सरम्नती