पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूतनाथ १८ के साथ रह कर उनकी मदद कीजिये, मगर इस तरह पर नहीं कि जो कुछ वे कहतो जाय पाप करते जायें। दलीप० । तब किस तरह से ? इन्द्र० । इस तरह से कि दोनों जिस तरह चाहें स्वयम् काम करके अपना हौसला पूरा करें और यही उनकी इच्छा भी है, मगर जब कभी वह धोखा खा जायं या किसी मुसोबत में फस जाय तब आप उनकी रक्षा करें। दलीप० । यह तो वडा कठिन काम है ! इन्द्र० । वेशक कठिन काम है और इसे सिवाय आपके दूसरा पूरा नहीं कर सकता। दलीप० । ( कुछ सोच कर ) बहुत अच्छा, मैं तैयार हू । इन्द्र० । तो बस आज ही माप मेरे साथ चलिये, मैं उन दोनो को आपके सुपुर्द कर दूं और उस घाटो के भेद भी आपको बता दू तथा जो कुछ में कर पाया हू उसे भी समझा दूं। दलोप० । जब भापकी इच्छा हो चलिए । (फाटक की तरफ खयाल करके) देखिए गुलाबसिंह चले पा रहे हैं, इन्हें चुनार से क्योंकर छुट्टी मिली। इन्द्र० । इनका हाल पापको मालूम नही है पर मैं सुन चुका हू प्रोर इस समय आपसे कहने ही वाला था कि इन्दुमति भी पान कल जमना और सरस्वती के पास पहुंची हुई हैं, मगर अव कहने को कोई जरूरत नही, खुद गुलावसिंह की जुबानो ग्राप सब कुछ सुन लेंगे पोर शायद इसी लिए वह यहाँ पाए भी है। दलीप०शिवदत्त भी नया नया राज्य पाकर ग्राजकल अंधा हो रहा है। इन्द्र० । वेशक ऐसा ही है। इतने ही में दरवान ने ऊपर पाकर गुलाबसिंह के पाने की इत्तिला को मोर उन्हें ले भाने का हुक्म पाकर चला गया। थोड़ी ही देर में गुलाब- सिंह वहाँ या पहुचे और उन्होने वडे मदव के साथ इन्द्रदेव को सलाम किया पौर दलीपशाह से मिले । .