मामले ऐसे हो गए कि भूतनाथ दोस्तो को इस्तोफा देकर दुश्मन बन बैठा और उसके सदव से भी हमें तकलीफ हो उठानी पड़ी। इतना कह कर गुलाबसिंह ने इन्द्र देव की तरफ देखा। इन्द्र० । हाँ हाँ गुलावसिंह तुम कहते जानो रुको मत, दलीपशाह से कोई वात छिपी हुई नहीं है। गुलाब० । ( हाथ जोड कर) जी नहा, अब जो कुछ कहना बाकी है आप ही इन्हें समझा दें, मैं डरता हू कि कदाचित् मेरी जुबान से ऐसी कोई बात निकल पड़े जिसे आप नापसन्द करते हों तो .. इन्द्र० । ( मुस्कुरा कर ) अजी नही गुलाबसिंह मैं तुम्हें अच्छो तरह जानता हू, तुम बडे ही नेक और सज्जन मादमी हो, जमना और सरस्वती ने जो कुछ भेद को बातें प्रमाकरसिंह से कही है सो मुझे मालूम है पोर प्रभाकरसिंह ने जो कुछ तुम्हें बताया है उसे भी मै कदाचित् जानता हूँ, अस्तु तुम जो कहना चाहते हो वेधडक कह जायो । गुलाब० । जो प्राज्ञा, अच्छा तो मै सक्षेप हो में कह डालता हूँ, (दलीपशाह से) भूतनाथ जिस घाटी में रहता है उसके पास ही जमना और सरस्वती भी रहती है । वह किसी तरह प्रभाकरसिंह को अपने यहां ले गई मगर इसके बाद ही इन्दुमति पुन दुश्मनो के हाथ में फस गई, उसे भी दोनो वहिन छुडा कर अपने यहा ले गई । तव से इन्दुमति उन्ही के यहाँ रहती है। प्रमाफरसिंह उस खोहसे बाहर पाए और कई दिनों के बाद हम दोनों श्रादमी धुनारगढ की तरफ रवाना हुए इसलिए कि कुछ सिपाहियों का बन्दोवस्त करके दुश्मन से बदला लें मगर भूतनाथ जिसे जमना और सरस्वती ने गिरफ्सार करके नीचा दिखाया था हम लोगों का दुश्मन वन वैठा और धोखा देकर प्रभाकरसिंह को कैद कर अपने घर ले गया, कहा रक्खा मुझे मालूम नहीं। इसके बाद गुलाबसिंह ने वह किस्सा खुलासे तौर पर दलीपशाह और इन्द्रदेव से वयान किया। इन्द्रदेव को प्रभाकरसिंह को गिरफ्तारी का हाल
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