पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१७

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भूतनाथ १६

में जाने वाले को इस दाहिनी तरफ वाली सुरंग मे घुसना चाहिए । सामने अथवा बाई तरफ वाली सुरग में जाने वाला किसी तरह जीता नही बच सकता।"

इतना कह कर भूतनाथ दाहिनी तरफ वाली सुरग में घुसा और कुछ दूर जाने वाद उसने मोमबत्ती बुझा दो।

लगभग दो सौ कदम चले जाने के बाद यह सुरग खतम हुई और इसका दूसरा मुहाना नजर आया। सबके पहिले भूतनाय सुरग से बाहर हुआ, उसके वाद गुलाबसिंह और उसके पीछे इन्दुमति वाहर हुई, मगर प्रभाकरसिंह न निकले । तीनो आदमी घूम कर उनका इन्तजार करने लगे कि शायद पीछे रह गए हो मगर कुछ देर तक इन्तजार करने पर भी वे नजर न आये। इन्दुमति का कलेजा उछलने लगा, उसकी दाहिनी भुजा फडक उठी, और उसकी पाखो मे श्रासू डबडबा पाये । भूतनाथ ने इन्दुमति और गुलाबसिंह को कहा, "तुम जरा इसी जगह दम लो मै सुरग में घुस कर प्रभाकरसिंह का पता लगाता हू।" इतना कह कर भूतनाय पुन उसी सुरग में घुस गया।

दूसरा वयान

प्रभाकरमिह पीछे पीछे वले पाते थे, यकायक कैसे और कहां गायव हो गये ? क्या उस सुरग में कोई दुश्मन छिपा हुआ था जिसने उन्हें पकड लिया ? या नन्होंने खुद हमें धोखा देकर हमारा साथ छोड दिया ? इत्यादि तरह तरह की बातें सोचती हुई इन्दु वहुत ही परेशान हुई, मगर इस शाशा ने कि अभी अभी भूतनाथ उनका पता लगा के सुरग से लौटता ही होगा, उने बहुत कुछ सम्हाला और वह एक दम सुरग की तरफ टकटकी लगाये गदी देवती रही, परन्तु थोडी ही देर में उसकी यह प्राशा भी जाती रही ज्व उसने भूतनाय को अकेले ही लौटते देखा और दुख के माथ भूतनाय ने बयान किया कि 'उनसे मुलाकात नहीं हुई । मेरी समझ में नही पाता कि क्या भेद है और उन्होने हमारा साथ क्यो छोडा ? क्योकि अगर किसी