पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१७०

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दूसरा भाग मतलव ही क्या? बेचारी प्रौरत की जात प्रवला कहलाती है और तुम इतने बडे नामी ऐयार हो, फिर भी जरा से मामले के लिये मुझसे मदद मागते हो घोर चाहते हो कि मै तुम्हारे लिये अपने एक ऐसे रिश्तेदार के साथ वेमुरी- वती यरु जो दया करने के योग्य है । तुम्हे शर्म नही प्रातो । हां अगर मैं सुद तुम्हारे साथ किसी तरह की बुराई करूं तो जरूर मुझसे बदला लेना उचित था। भूत० । (मुस्कुरा कर) सत्य वचन मालूम हुप्रा कि पाप बहे सच बोलने वाले हैं और सिवाय सच के कभी झूठ नहीं बोलते । मच्छा खैर इन बातो से कोई मतलब नही, मैं तुमसे वहस करना पसन्द नहीं करता । मै जो कुछ पूछता हू उसका साफ साफ जवाब दो नहीं तो तुम्हारे लिये अच्छा न होगा। प्रभा० । मय इस घमको में प्राकर तो मैं तुम्हारो वातो का जवाब नहीं दे सफता, मुलायमियत मे अगर पूछते तो शायद कुछ जवाब दे भी देता ययो कि न तो तुम्हारे किसी अहसान का बोझ मेरी गर्दन पर है और न मै तुमने ठरता ही हूँ। भूत० । ऐसी अवस्था में भी तुम मुझसे नही डरते ? देख रहे हो कि तुम्हारे हवें छोन लिये गये, हथकडी तुम्हारे हायो में पड़ी हुई है, और इस समय तुम हर तरह से मजबूर और कमजोर हो । "यह हथकहो तो कोई चीज नहीं है, मेरे ऐसे क्षत्री के लिये तुमने इसे पसन्द किया यह तुम्हारी भूल है ।" इतना कह कर वहादुर प्रभाकरसिंह एक भटगा ऐसा दिया कि हयन हो टूट कर उनके हाथों से अलग हो गई और साथ ही इसके वे अपनी कमर से तलवार संच कर भूतनाथ के सामने खडे हो गये और बोले, "वताप्रो क्या पव भो मैं प्रभाकरसिंह को कमर में एक ऐमी तलवार घो जो बदन के साथ पेटी फो तरह लपेट यार बोधो जा सकती पी, चमडे को मुलायम म्यान उसके कार गढ़ी हुई पो मोर रसे प्रमाकरसिंह कपडे के अन्दर कमर में लपेट कर धोती मोर इमरबन्द से छिपाये हुए थे,अभी तक उस पर भृतनाय को निगाह - तुम्हारा कैदी 7"