पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१७५

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भूतनाथ जख्मो को धो कर उन पर गीले कपडे की पट्टी बाध दू प्रमा० । नही इसकी कोई जरूरत नहीं है, घाटी के बाहर निकल कर में इसका उपाय कर लूगा । भूत ।पाखिर क्यो ऐसा किया जाय, जितनी देर होगी उतना ज्यादे खून निकल जायगा, आप इसके लिए जिद्द न करें। आप मुझ पर भरोसा करें और प्राज्ञा दें कि इन जख्मों पर पट्टी बाधदू । प्रभा० । खैर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं तैयार है। भूतनाथ तेजी के साथ उस गुफा में चला गया जिसमें उसका डेरा था और पीतल की गगरी पानी से भरी हुई और एक लोटा तया कुछ कपमा पट्टो बाधने के लिए लेकर प्रभाकरसिंह के पास लौट आया। प्रभाकरसिंह ने कपडे उतारे और भूतनाथ ने जख्मों को धो कर उन पर पट्टिया वांधी । इसके बाद प्रभाकरसिंह कपडा पहिन कर चलने के लिए तैयार हो गए। भूतनाथ ने अपने प्रादमियो के विषय में प्रभाकरसिंह से पूछा कि 'इन सभों की वेहोशी खुदवखुद जाती रहेगी या इसके लिए कोई इलाज करना होगा?' पहिले तो प्रभाकरसिंह के जी में माया कि अपने हाथ की अंगूठी छुला कर उन सभो की वेहोशी दूर कर दें मगर फिर कुछ सोच कर रुक गए पौर बोले, "नही इनकी बेहोशी श्राप से प्राप थोडी देर में बाती रहेगी, कुछ उद्योग करने की जरूरत नही ।" आगे आगे भूननाथ और पोछे पीछे प्रमाकरसिंह वहां से रवाना हुए। सुरग में घुस कर भूतनाथ ने वह दर्वाजा खोला जो बन्द था मगर प्रमाकर- सिंह को यह नहीं मालूम हुआ कि वह दर्वाजा किस ढग मे खोला गया। घाटी के बाहर निकल जाने पर भी भूतनाथ बहुत दूर तक पहुचाने के लिए प्रमाकरसिंह के साथ मोठी मोठी वातें करता हुआ चला गया। लग- भग माघ कोस के दोनो भादमी चले गये होंगे जब प्रभाकरसिंह का सर घूमने लगा और घोरे धोरे वेहोश होकर वे जमीन पर गिर पडे ।