पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१८०

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दूसरा भाग सुना। मुझे छुरी का एक जख्म लगा था जो अभी तक तकलीफ दे रहा है। भोला० । सम्भव है, हो सकता है, इसमें आश्चर्य हो क्या है ! इसके बाद दोनों प्रादमी एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर देर तक वातें करते रहे । भूतनाथ पर जो कुछ वीती थी उसने व्योरेवार वयान किया और भोलासिंह ने जो कुछ कहा उसे बड़े गोर से भोलासिंह भूतनाथ का बहुत ही विश्वासपात्र था इसलिये साधू महा- शय को कृपा का हाल भूतनाथ ने यद्यपि अपने किसी शागिर्द या आदमी से बयान नहीं किया था मगर भोलासिंह से साफ और पूरा पूरा वयान कर दिया, चाहे अभी यह नहीं बताया कि उस खजाने का दर्वाजा जिस तरह खुलता प्रौर बन्द होता है । हा अन्त में इतना जरूर कह दिया कि मैं तुम्हें उस खजाने वाले घर में ले चलू गा भौर दिखाऊगा कि वहां कितनी बेशु. मार दौलत है। सन्ध्या होते ही भोलासिंह को लेकर भूतनाप अपनी अनूठी घाटी में चला गया। रास्ते में उस दवांजे का हाल और भेद भी भोलासिंह को बताता गया जिसे विमला ने बन्द कर दिया था और जिसे साधू महाशय से भूतनाथ ने खोला था। भोलासिंह जन उस घाटी के अन्दर पहुच गया तो भूतनाथ ने सबसे पहिले प्रभाकरसिंह से उसकी मुलाकात कराई । भोलासिंह को देख कर पोर यह सुन कर कि इसका नाम भोलासिंह है प्रभाकरसिंह चौके और गौर से उसकी तरफ देख कर चुप हो रहे । इसके बाद भोलासिंह को साथ लेकर मृतनाथ उस गुफा की तरफ रवाना हुमा जिसमे सजाना था, वह पजाना जो साधू महाशय की कृपा से मिला था। रोशनी न फरसो गंधेरे हो में भोलासिंह को सुरग के अन्दर अपने पोछे पीछे पाने के लिए भूतनाथ ने कहा और भोलाविह भो वेगीफ पदम दयाय घसा गया, मगर अन्त में भूतनाय पजाने के दाजे पर पहुंचा गौर यह यांजा मोल चपा तब उसने अपने ऐयारी के बटुए में से सामान की कृपा