सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७४ “भूतनाथ निकाल कर रोशनी की प्रौर भोलासिंहको कोठडीके अन्दर पाने के लिए कहा। भूत० । देखो भोलासिंह, इस तरफ निगाह दौडामो। ये सब चांदी के देग प्रफियों से नकानक भरे है, इनमें से सिर्फ एक देग मैंने खाली किया है। भोला । ( देगों या हण्डो की तरफ देख के ) बेशक यह बहुत दिनों तक काम देंगी। भूत० । वेशक, साथ ही इसके यह भी सुन रक्खो कि वह साधू महा- रान पुन यहा प्रावेंगे तो ऐसे ऐसे और भी कई खजाने मुझे दे गे । भोला० ० । ईश्वर की कृपा है आपके ऊपर! हा यदि आप भाज्ञा दीजिये तो में भी जरा इन अशर्फियो के दर्शन कर लू। भूत० । हो हा, अपने हाथों ही से ढकना खोलत जानो और देखते जामो, वल्कि मैं यह भी हुक्म देता है कि इस समय जितनी अशर्फिया तुमसे उठाते बने उठा लो और अपने घर ले जाकर बाल बच्चो को दे आमो, तुम खूब जानते हो कि मैं तुम्हें अपने लडके की तरह मानता हूँ । भोला० । नि सन्देह ऐसा ही है मगर मैं इस समय अशर्फिया लेकर क्या करूगा, आपकी बदौलत मुझे किसी वात की कमी तो है नहीं। भूत० । नहीं नहीं नही, तुम्हें जरूर लेना पडेगा। भोला । ( कई देगो के ढकने उठा कर देखने के बाद ) मगर इनमें से तो कई हण्डे खाली हैं, पाप कहते हैं कि सिर्फ एक ही हण्डे की प्रश- फियां निकाली गई है। भूत० । ( ताज्जुव से ) क्या कई हण्डे खाली पड़े हैं ! इतना कह कर भूतनाथ ने एक एक करके उन हण्डो को देखना शुरू किया मगर यह मालूम करके उसके पाश्वर्य का ठिकाना न रहा कि उसका आधा खजाना एक दम से खाली हो गया है प्रर्यात् प्राधे हएडो में प्रशफियों की जगह एक कोडी भी नहीं है। मूत० । हैं, यह क्या हुआ | मैं खूब जानता हूं कि इन सब हण्डो में 'अशिफया भरी हुई थी, मैने अपने हाथ से इन सभों का ढकना उठाया था . -