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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१८८

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८१ दमरा भाग छठा० । (क्रोय में भर पर) सीधी तरह मे यह त्यो नही पहदेते कि यहा से चले जापो । इस तरह इज्जत लेने और देने की जरूरत ही क्या है? भूत० । वाह वाह, यया पच्छो बात कही है । तमामख गाना उठावर हगम कर जाग्रो पोर इसके पदले में हम बस इतना हो वह कर रह जाय कि चले प्रानो! इस तरह की बाते हो रही थी कि वे वाकी के चार प्रादमी भी पा गए जो वालादवी के लिए कुछ रात रहते घाटी के बाहर निकल गये थे । भूत- नाथ ने उन सभी से भी इसी तरह की बाते की और अच्छी तरह डांट वताई। उन लोगो ने भी इसकी जानकारी से इनकार किया और कहा कि लोगों को कुछ भी नहीं मालूम कि यहा प्रापका तजाना रहता है,कब कौन उठा कर ले गया तथा प्रभाकरसिंह को किसने यहा मे भगा दिया। भूतनाथ बडा ही लालचो श्रादमी था,रुपये पैमे के लिए वह बहुत जल्द वेमुरोवत बन जाता था पोर खोटे से खोटा काम करने के लिए तैयार हो जाना था । बात तो यह है कि रुपये पैसे के विषय में वह किसी का एत- बार ही नही करना था । अाज उ-को बहुत बड़ी रकम गायर हो गई थी शोर मारे क्रोध के वह जलनुन कर खाक हो गया था। अपने पादमियो पर उमने इतनी ज्यादे सहतो को प्रोर ऐसे बुरे शब्दों का प्रयोग किया कि ये सब एक्दम बिगड ग्वदे हुए क्योकि ऐयार लोग इस तरह से वेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकते। इन प्रादमियों या शागिों में अतिरिन तनाय के पास और भी पाई प्रादमी घे जो दूसरी जगह रहते थे तथा पोर कामो पर मुकर्रर कर दिए गए थे मगर इस घाटो पे अन्दर प्राजमाल ये है। बारह प्रारमोहिते थे जो पान भूतनाप को गौ से नाराज होकर वेदिल हो गये थे और उसका साथ घोर दूसरी जगह चले जाने के लिए तैयार थे मगर मृतनाथ ने उन्हें सोधी तरह जाने भो नहीं दिया पलिक तलवार मंत्र कर सभी को सजा देने के लिए तैयार हो गया।