भूतनाथ | १८ |
और भयानक था। जिस जगह इन्दुमति भूतनाथ और गुलाबसिंह खडे है वहा से दिन के समय यदि आप श्राख उठा कर चारो तरफ देखिये तो आपको मालूम होगा कि लगभग चौदह या पद्रह विगहे के चौचक जमीन, चारो तरफ के ऊंचे ऊचे और सरसब्ज पहाडो से सुन्दर और सोहावने सरोवर के जल की तरह घिरी हुई है। जिस तरह चारो तरफ के पहाडो पर खुशरग फूल पत्तो को बहुतायत दिखाई दे रहो है उसी तरह यह जमीन भी नम घास की बदौलत सब्ज मखमली फर्श का नमूना बन रही है और जगह जगह पर पहाड से घिरे हुए छोटे छोटे चश्मे भी वह रहे है । यद्यपि आजकल पहाडो के लिये सरसब्जी का मौसिम नही है मगर यहा पर कुछ ऐमी कुदरती तरावट है कि जिसके सवव से 'पतझड' के मौसिम का कुछ पता नही लगता, यो समझ सकते हैं कि वरसात के मौसिम मे अाजकल से कही बढ चढ कर खूवी खूबसूरती और सरसब्जी नजर आती होगी।
इस स्थान मे किसी तरह को इमारत बनी हुई न थी मगर चारो तरफ के पहाटो में सुन्दर और सुहावनी गुफायो और कन्दरामो की इतनी वहतायत थी कि हजारो प्रादमी वडी खुशी और आराम के साथ यहा गुजारा कर सक्ते थे । इन्ही गुफानो में भूतनाथ तथा उसके तीस चालीस सगी साथियो का डेरा ण और इन्ही गुफानो मे उसके जरूरत की सब चीजें और हर्वे इत्यादि रहा करते थे, तथा उसके पास जो कुछ दौलत थी वह भी कही इन्ही जगहो मे होगी, जिमका ठीक ठोक पता उसके साथियो को भी न था । भूतनाथ का कथन है कि ऐसे ऐसे कई स्थान उसके कब्जे में हैं और इस बात का कोई निश्चय नहीं है कि कब या कितने दिनो तक वह किस म्थान मे अपना डेग रखता है या रक्खेगा।
मुबह की मुफेदी अच्छी तरह फैल चुकी थी जब भूतनाथ और गुलाव सिंह के उद्योग मे इन्दुमति होग में आई । यद्यपि वह खुद इस खोह के बाहर होकर प्रभाकरसिंह की खोज मे जान तक देने के लिए तैयार थी और ऐमा परने के लिए वह जिद्द भी कर रही थी मगर भूतनाव और गुलावसिंह ने