पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८२
दूसरा भाग
 

'निकल गये। मालूम होता है कि इनका कोई न कोई मददगार यहा जरूर माया चाहे वह मेरे शागिर्दो का दोस्त हो या मेरा दुश्मन । घर कई दिनो से ऐसी बातें हो रही है कि मेरो रामझ में कुछ भी नहीं याता है । क्या सम्भव है कि इन लोगो ने होश में पाने के बाद प्रापुर में मिम जुन फर किसी तरह पपने हाय पैर खोल लिए होंगे? हा हो भी सकता है । मनु प्रब मुझे मानना पडेगा कि मेरे दुश्मनो को गिनती बढ़ गया क्योकि वे लोग भी अब मेरे साथ जरूर दुश्मनी करेंगे प्रौर ऐसा अवस्या में मैं किस तरह का वार सम्हाल करूंगा? मैं तो यही सोचे हुए था कि इन लोगो को "एक दम मार कर वयेडा ते करूगा क्योकि दुश्मनों की गिनतो वहाना पच्छा नही मगर मफसोस तो यह है कि अब मैं अकेला क्या करूगा ? दा चार साथी अगर प्रोर है भो नो प्रप उनका क्या भरोसा ? ये लोग प्रब जरूर उनकी भो भडकावेंगे और उन लोगो को जब यह मालूम हो जायगा कि में अपने शागिर्दो को इस तरह पर सजा दिया करता हूं तो वे लोग भो मेरा साप छोड़ देंगे, बल्कि ताज्जुब नहो कि भविष्य में कोई भी मेरा सापी बनना पसन्द न करे । पाह,मैं मुफ्त परेशानी उठा रहा हू , भोग रहा हू , अगर अपने मालिक के पास चुपचाप बैठा रहता तो काहे को इस तरददुद में पता, मगर भव तो मै वहा भो जाना पन्द नहीं फरता क्योंकि दयाराम फो दोनो स्थियां वहाँ मुझे पोर भी विशेष कष्ट देंगी। अफसोस यह बात रणजीतसिंह ने मुझसे व्यर्व हो धिपाई और कह दिया कि दयाराम को दोनो स्त्रियों का देहान्त हो गया । मगर जहाँ तक मैयाल मरता हू इसमें उनका कमूर कुछ भी नहीं जान पढता, सम्भव है कि मेरा तरह वे भी धोखे मे साल दिये गऐ हो जोर प्रमा तक उन्हें इस बात को जबर भी न हो कि जनता मोर सरस्वती जीतो हैं। मगर प्रय मुझे गया करना चाहिये यह सावन की बात है। मैं तो ऐसा गायन हो सकता हूँ कि हया फो भो मेरो रावर न लगे मगर दम घाटो का छोड़ना -मरा कठिन हो रहा है क्योकि अगर में यहा मे वला जागा ता फिर साधू व्यर्थ का दुःख -