पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१९१

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तनाथ हाशय से मुलाकात न होगी और मैं उस दौलत को न पा सकूगा जो उनकी बदौलत मिलने वाली है, मगर यहाँ का रहना भी प्रघ कठिन हो रहा है । प्रच्छा कुछ दिन के लिये इस स्थान को अब छोड ही देना चहिये और जो कुछ बचा हुमा खजाना है उसे निकाल ले जाना चाहिये। इस तरह की बातें सोचता हुमा मूतनाथ उस गुफा की तरफ रवाना हुआ जिसमें उसका खजाना था। जब गुफा के अन्दर जाने के बाद रोशनी लिये हुए खजाने वाली कोठडी में पहुंचा तो देखा कि मब उन हण्डो में एक भी अशर्फी वाफी नहीं है, सब की सब गायब हो गई , बल्कि वे हण्डे तक भी भव नहीं दिखाई देते जिनमें प्रशफिया रक्खी गई थी। भूतनाथ का दिमाग हिल गया और वह अपना माथा पोट कर उसी जगह बैठ गया । थोडी देर बाद भूतनाथ उठा और मोमबत्ती की रोशनी में उसने उस कोठडी को अच्छी तरह देखा, इसके बाद दर्वाजा बन्द करके निकल पाया. और गुफा की जमीन को बड़े गौर से देखता तथा यह सोचता हुमा पहाडो के नीचे उतर गया कि 'अव यहा रहना उचित नहीं है। दसवां बयान दोपहर का समय है मगर सूर्यदेव नही दिखाई पड़ते। अस्मान गहरे बादलो से भरा हुआ है । ठगढी ठण्ढी हवा चल रही है और जान पडता है कि मूसलाधार पानी वरसा ही चाहता है। भूतनाथ अपनी घाटी के बाहर निकल कर अकेला ही प्रौर मैदान जंगल की सैर कर रहा है । उसके दिल में हर तरह की बातें उठ रही है, तरह तरह के विचार पैदा हो पौर मिट रहे हैं । कभी वह अटक कर इस तरह चारो तरफ देखने लग जाता है जैसे किसी के माने की प्राहर लेता हो और कभी जफील वजा कर उसके जवाब का इन्तजार करता है । इसी तरह वह बहुत देर तक घूमता रहा, माखिर एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गया भोर कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर बाद उसने पुनः