पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१९७

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भूतनाथ ६० रामदास० । मेरो राय में तो लामाघाटो उत्तम होगी ।* भूत० ।-खूब कहा, इस राय को मैं पसन्द करता हू इतना कह के भूतनाथ ने पुन उस औरत की गठठो बाघी जिसे राम- पास ले माया था पोर अपनी पीठ पर लाद यहा से रवाना हुमा। रामदास भो उसके पोछे पीछे चल पडा। ग्यारहवां बयान भूतनाथ के हाथ से छुटकारा पाकर प्रभाकरसिंह अपनी स्त्री से मिलने के लिये उस घाटी में चले गये जिसमें कला और बिमला रहती थी। सध्या का समय था जब वे उस घाटी में पहुँच कर कला बिमला और इन्दुमति से मिले । उस समय वे तीनो बगले के मागे सुन्दर मैदान में पत्थर की चट्टानों पर बैठी पापुस में बातें कर रही थी। प्रभाकरसिंह को देख कर वे तीनों बहुत प्रसन्न हुई , कई कदम आगे बढ़ कर उनका इस्तकबाल क्यिा तथा उसी जगह ला कर अपने पास बैठाया जहा वे सब वैठी हुई यो । विमला० । मैं भूतनाथ के हाथ से छुट्टी मिलने पर आपको मुबारकबाद देती हू । वास्तव में इन्द्रदेव जो ने इस विषय में बही चालाको को नही तो हम लोगों से गहरी भूल हो गई थी कि भूतनाय की घाटी का रास्ता बन्द कर दिया था। उन्होंने साधू वन कर भूतनाथ को ऐसा धोखा दिया कि वह जन्म भर याद रखेगा। प्रभा० । बेशक ऐसी ही बात है, मुझे प्रभो थोडो देर हुई है यहा पाते समय इन्द्रदेवजी रास्ते में मिले ये जो तुम्हारे पास हो कर जा रहे थे, उन्होंने सब हाल मुझपे कहा पा पार उस समय मा वे उपो तरह पाघू महात्मा वने हुए थे। विमला० । जी हा, अब वे वरावर उसो मूरत में यहा माया करेंगे, उनका खयाल है कि असली सूरत में प्राने जाने से कभी न कभी भूतनाथ

  • सामाघाटी का जिक्र चन्द्रकान्ता सन्तति में मा चुका है।