पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१९८

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दूसरा भाग , को जरूर पता लग जायगा पोर भतनाथ उनसे खटक जायगा क्योकि वह वठा हो चांगला है। प्रभा० । उनका खयाल बहुत ही ठीक है, मुझसे भी ऐसा ही कहते थे । उन्होने मुझसे यह भी पूछा था कि अब तुम्हारा क्या इरादा है, भूत नाथ का पीछा करोगे या नहीं ? इसके जवाब में मैंने कहा कि 'भूतनाथ का पोछा करने को वनिस्वत मैं नौगढ के राजा से मिल कर चुनारगढ़ पर चढाई करना अच्छा समझता हूं क्योंकि राजा शिवदत्त से बदला लिये विना मेरा जी ठिकाने न होगा और इस काम को मैं सब से बढ़ कर समझता हूँ। इन्द्रदेवजी ने मेरी यह बात स्वीकार कर ली मौर इस विषय में जो जो वातें मैने सोची थी उसे भी पसन्द किया। इन्दु० । तो क्या प्रवभाप नौगढ जाफर चुनार की लड़ाई में शरीक होगे! प्रभा० । हो मैं जरूर ऐसा ही करूंगा, माजकल पन्द्रकान्ता को बदौलत धीरेन्द्रसिंह से और शिवदत्त से खूब खिंचाखिचो हो रही है, मेरे लिए इससे पढ़ कर और कौन सा मौका मिलेगा! विमला० । श्राप स्वयम् फौज तैयार करके चुनार पर चढाई कर सकते है । इस काम में में प्रापकी मदद करूंगी। वे सब प्रक्रिया जो भूतनाथ को दिखाई गई थी और पुनः ले ली गई में प्रापको दे सकती हूँ क्योंकि इन्द्रदेवजी ने वे सब मुझे दे दी है। पाप जानते ही हैं कि इस घाटी से भूतनाथ यो घाटी में जाने लिए कई रास्ते है, इसी तरह उस सजाने वालो कोठरी में भी जाने के लिए एक रास्ता पहाँ से है और इसी रास्ते से हमलोग उन प्रशफियों को उठा लाये थे। प्रभा० । मुझे मालूम है, यह हाल इन्द्रदेवजी से सुन चुका हूँ मगर चुनार के विषय में में इस राय को पसन्द नहीं करता औरन इम मामने पिासी से विशेष पद हो लूगा । हो मेरे दोस्त गुलामिह जरूर मेरा साथ देंगे, मगर नुना है कि वे इस समय दनोपशाह के साथ पाहीं गये है और दनोपशाह नो मुबह शाम में यहाँ पाने वाले हैं।