भूतनाथ ६४ - बारहवां बयान गुलाबसिंह को साथ लेकर प्रभाकरसिंह नौगढ़ चले गये । वहा उन्हें, फौज में एक ऊचे दर्जे की नौकरी मिल गई और चुनार पर चढाई होने से उन्होने अपने दिल का हौसला खूव हो निकाला। वे मुद्दत तक लौट कर -इन्दुमति के पास न पाये और न इस तरफ का कुछ हाल ही उन्हें मालूम हुप्रा। जब चुनारगढ फतह हो गया, राजा शिवदत्त उदासीन हो कर भाग गए, चन्द्रकान्ता को शादी हो गई और चुनार की गद्दी पा राजा बोरेन्द्र- सिंह बैठ गये, तब बहुत दिनों के बाद प्रभाकरसिंह को इस बात का मौका मिला कि वे जाकर इन्दुमति से मुलाकात करें। प्रभाकरसिंह के दिल में तरह तरह का खुटका पैदा हो रहा था और यह जानने के लिए वे बहुत ही उत्सुक हो रहे थे कि उनके पीछे कला, विमला और इन्दुमति पर क्या क्या बीती, अस्तु वे गुलाबसिंह को साथ लिए हुए बहुत तेजी के साथ कूच और मुकाम करते एक दिन दोपहर के समय उम पहाडी के पास पहुचे जिसके अन्दर वह सुन्दर पाटो थी जिसमें कला और विमला रहती थी। वे सोच रहे थे कि अब थोड़ी ही देर में उन लोगो से -मुलाकात हुमा चाहती है जिनसे मिलने के लिए जो वेचैन हो रहा है। आज कई वर्ष के बाद प्रभाकरसिंह इस घाटी के अन्दर पैर रक्खेंगे। मान पहिले को तरह गर्मी या रसात का मौसम नहीं है, तल्कि जाडे के दिनो में प्रभाकरसिंह उस घाटी के अन्दर जा रहे हैं, देखा चाहिये वहा का मौसम कैसा दिखाई देता है। सुरग का दर्वाजा खोलना मौर बन्द करना उन्हें बखूबी मालूम था, धल्कि इस घाटी के विषय में वे और भी बहुत कुछ जान चुके थे प्रस्तु गुलाबसिंह को बाहर ही छोड कर वे सुरग के अन्दर घुमे और दर्वाजा खोलते मौर बन्द करते हुए उस घाटो के मन्दर चले गये। मगर उन्हें पहुँ. चने के साथ ही वहा कुछ उदासी सो मालूम हुई,ताज्जुव के साथ चारो तरफ
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