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दुसरा भाग
 

देखते हुए बंगले के अन्दर गये और वहा बिल्कुल ही सन्नाटा पाया। जिस बंगले को ये पहिले मजा हुआ देख चुके थे और जिसके अन्दर पहिले तरह तरह के सामान मौजूद थे आज वह बंगला बिल्कुल ही खाली दिखाई दे रहा है । सजावट की बात तो दूर रही वहा एक चटाई बैठने के लिये और एक लुटिया पानी पीने के लिए भी मौजूद न थी। यही हाल वहा को ग्राममारियो का भो था जिनमें से एक भी पहिले खाली नहीं दिखाई देती थी। आज वहां हर तरह से सन्नाटा छाया हुआ है और ऐसा मालूम होता है कि वर्षों से इस वगले के अन्दर किसी आदमी ने पैर नहीं रखा।

इस बंगले में से एक रास्ता उस मकान के अन्दर जाने के लिए था जिसमे कला और विमला खास तौर पर रहती थी अथवा जिस मकान में पहिले इन्दुमति को बेहोशी दूर हुई थी। प्रभाकरसिंह हैरान और परेशान उस मकान में पहुचे मगर देखा कि वहा की उदासो उस वगले से भी ज्यादे बढी चली है और एक तिनका भी यहां दिखाई नहीं देता।

"यह नया मामला है, यहा ऐसा सन्नाटा क्यो छाया हुआ है ? कला,विमला और इन्दुमति कहाँ चली गई ? अगर कहीं किसी मानुस वाले के घर में चली गई तो यहा इस तरह उजाड़ कर जाने की क्या जरूरत थी? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि वे तीनो भूतनाथ के कब्जे में फस गई हों और भूतनाथ ने ही इस मकान को ऐसा उजाड बना दिया हो !" इन सब बातों को सोचते हुए प्रभाकरसिंह उदास और दुखी चित्त से बहुत देर तक चारो तरफ घूमते रहे और तब यह निश्चय कर वहां से चल पडे की हमे भूतनाथ की घाटी का हाल मालुम करना चाहिये और देखना चाहिये कि वह किस अवस्था में है।

पहिले प्रभाकरसिंह उस सुरग में घुमे जिसमें से उन्होने पहिले दिन भूतनाथ की घाटी में इन्दुमति को एक अपनी ही मूरत वाले के साथ कहीं जाते हुए देखा था । सुरंग के अन्त में पहुच सुराख की राह से उन्होंने देखा कि भूतनाथ की घाटी में भी बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ है अर्थात यह नहीं