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भूतनाथ
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यद्यपि चन्द्रकान्ता सन्तति में प्रभाकरसिंह और इन्दुमति का नाम नहीं पाया है मगर भूतनाथ का जीवन का इन दोनो व्यक्तियो से बहुत ही घना सम्बन्ध है और भूतनाथ को बरबादी या ठिठाई का जमाना शुरू होने के बहुत दिन भूतनाथ को इन दोनों से वास्ता पड चुका था और इन्ही दोनों के संबंध से इन्द्रदेव और दलीपशाह के ऊपर भी भूतनाथ की निगाह पड चुका थी इसलिये हमें सबसे पहिले प्रभाकरसिंह और इन्दुमति का परिचय देना पडा, तथापि प्रापको आगे चल कर प्रभाकरसिंह मोर इन्दुमति की अवस्था पर माश्चर्य करना पड़ेगा।

यद्यपि इन्दुमति का पता न लगने से प्रभाकरसिंह को बहुत दुख हुआ परन्तु इन्द्रदेव का खयाल उन्हें ढाढ़स दे रहा था। वे समझते थे कि इन्दुमति अपनी दोनो बहिनों के साथ जरूर इन्द्रदेव के यहां चली गई होगी, अस्तु सब से पहिले इन्द्रदेव ही के यहां चल कर उसका पता लगाना चाहिए, इस बात का निश्चय कर गुलाबसिंह को साथ लिए हुए प्रभाकरसिंह इन्द्रदेव से मिलने के लिए रवाना हुए।

जमना और सरस्वती की जुबानो प्रभाकरसिंह को मालूम हो चुका था कि इन्द्रदेव वास्तव में किसी तिलिस्म के दारोगा है परन्तु इन्द्रदेव ने अपने को ऐसा मशहूर नहीं किया था और न साधारण लोगो को उनके विषय में ऐसा खयाल ही था। उनके मुलाकातियों में से भी बहुत कम आदमियों को यह वात मालूम थी कि इन्द्रदेव किसी तिलिस्म के दारोगा है और यदि कोई इस बात को जानता भी था तो उसे तिलिस्म के विषय में कुछ ज्ञान ही न या । प्रगर कोई इन्द्रदेव से तिलिस्म के विषय में कुछ पूछता भी तो इन्द्रदेव समझा देते कि यह सब दिल्लगी को बातें हैं। हाँ,दो चार आदमियो को इस बात का पूरा पूरा विश्वास था कि इन्द्रदेव किसी भारी तिलिस्म के दारोगा है, मगर अपनो जब पूरा पता नहीं लगने देते थे। इसके अतिरिक्त इन्द्र देव का रहन सहन ऐसा था कि किसी को उनके विषय में जानने की प्रावश्यकता ही नहीं पड़ती